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सरगम की धुन गढ़वे बारे साज हबा में उड़ रए एँ / नवीन सी. चतुर्वेदी

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सरगम की धुन गढ़वे बारे साज हबा में उड़ रए एँ।
पगडण्डिन पे चलबे बारे मिजाज हबा में उड़ रए एँ॥

रात अँधेरी, नील-गगन, चलते भए बादर, तेज हबा।
बच्चा बोले पानी बारे जहाज हबा में उड़ रए एँ॥

दूर अकास में ल्हौरे-ल्हौरे तारेन की पंगत कों देख।
ऐसौ लागत है जैसें पुखराज हबा में उड़ रए एँ॥

सच्ची बात तौ यै है पानी जैसौ बहनौ हो, लेकिन।
माफी दीजो भैया सगरे समाज हबा में उड़ रए एँ॥

मन में आयौ माखनचोर कों माखन-मिसरी भोग धरों।
बा दिन सों ही यार अनाज और प्याज हबा में उड़ रए एँ॥
और कहाँ टिकते भैया जी सब की काया सब के मन।
महारानी धरती पे हैं महाराज हबा में उड़ रए एँ॥

अब तक के सगरे राजा-महाराजा आय कें देखौ खुद।
प्रेम सबन कौ है सरताज और ताज हबा में उड़ रए एँ॥