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सरग-नरक सब इहें हे / पीसी लाल यादव
Kavita Kosh से
का ले के आए तैंहा, का ले के तैं जाबे रे?
जइसे करम-करनी करबे, तइसे फल पाबे रे।
गजब गुमान हे तोला,
अपन धन दोगानी के।
जिनगी के भरोसा कतका
फोटका ये हर पानी के॥
सोन-चांदी के पाछू परके, का सोन चांदी खाबे रे?
का ले के आए तैंहा? का ले के तैं जाबे रे?
सरग-नरक सबो इहें हे,
ऊपर कहाँ के कुछु हे?
जिनगी तोर साँप बरोबर
सुख ह जइसे छुछुहे॥
आँखी फूटही, कनिहा टूटही, पाछू तैं पछताबे रे।
का ले के आए तैंहा? का ले के तैं जाबे रे॥
सेवा के फुलवा धर के अब
जिनगी अपन महमहा ले।
दया-मया-परेम के संगी
जगमग जोत जगा ले॥
नंदिया के पानी कस, सुग्घर सागर समाबे रे।
का ले के आए तैंहा? का ले के तैं जाबे रे॥