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सरदी के दिन आए / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
सरदी के दिन आए, भैया
सरदी के दिन आए ...
ठण्डी हवा दिखाकर आँखें मारे कोड़े
ठिठुरन अपने पैर फैलाकर भागे-दौड़े
किट-किट, किट-किट, दाँत बज उठे
बेदर्दी दिन आए ...
सरदी के दिन आए, भैया
सरदी के दिन आए ...
सूरज दिन भर सोए-ऊँघे, आँखें मूँचे
कड़क धूप के भाव हो गए काफ़ी ऊँचे
सूरज छिपा, रात की गुण्डा
गरदी के दिन आए ...
सरदी के दिन आए, भैया
सरदी के दिन आए ...
गद्दा गोदी में बैठाकर प्यार करे
गरम रजाई बड़ा सुखद व्योहार करे
जूते-मोजे, स्वेटर-टोपी
जरसी के दिन आए ...
सरदी के दिन आए, भैया
सरदी के दिन आए ...