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सरनाम के प्रासी / राज मोहन
Kavita Kosh से
सपने के अनरे में
हम्मे गोहरावे है
अब्बे ले आयके
सरनाम के प्रासी
मन के किनारे
चुपचाप खड़ा
संकरे है देखिल
सरनाम के प्रासी
बोले है हमसे
के सींच दे ना आए के
संझा के जूनी
रीबा के पानी से
झूरा से पड़ल है
मट्टी में दरारा
मकई के दाना
छींट दे ना हमपे
एक दफा फिर चरे
मुरगी मुरगा
मीजे हमार देंही
गुदगुदावे तनी हम्मे
मुरगी के बच्चा के दूब्बर गोड़
पसार दे छाती पे
लौकी के झमरा
जामुन के पेड़
कुसबंती के टिक्की
घेर दे तू हम्मे
अरहॉल के हेनिंग से
उज्जर लाल झंडी भी
गाड़ दे अगवारे
सजाए के आक दफे
चाहे लच जाए
अगोर लेबे फिनो
तीस बरिस और
बरखा के पानी में
खेले डमार गोदी में
कब अइए लौट के
हॉलैंड से राजू
अमरूद के छटकुन से
आगे से पीछे
कब अइए प्रासी में तू
उपरू दौड़ावे।