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सरफिरा है वक्त / सजीव सारथी
Kavita Kosh से
उदासी की नर्म दस्तक,
होती है दिल पे हर शाम,
और गम की गहरी परछाईयाँ,
तन्हाईयों का हाथ थामे,
चली आती है
किसी की भीगी याद,
आखों मे आती है,
अश्कों मे बिखर जाती है।
दर्द की कलियाँ
समेट लेटा हूँ मैं,
अश्कों के मोती,
सहेज के रख लेता हूँ मैं ...
जाने कब वो लौट आये .....
वो ठंडी चुभन,
वो भीनी खुश्बू,
अधखुली धुली पलकों का
नर्म नशीला जादू,
तस्सवुर की सुर्ख किरणें,
चन्द लम्हों को जैसे,
डूबते हुए सूरज में समा जाती है ,
शाम के बुझते दीयों में,
एक चमक सी उभर आती है,
टूटे हुए लम्हें बटोर लेता हूँ मैं,
बुझती हुई चमक बचा लेता हूँ मैं,
जाने कब वो लौट आये ......
सरफिरा है वक़्त,
कभी कभी लौट भी आता है ,
दोहराने - आपने आप को