भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सरलीकरण / व्योमेश शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ दृश्य कुछ आवाजें अकारण याद हैं
बेतुकी यादों का एक विचित्र अल्बम
होता होगा हरेक के पास
88 में सुनी गयी एक आदमी की आवाज़
इसलिए याद है
कि मेरे मामा से मिलती है
टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल के बाहर
एक निर्माणाधीन इमारत के धूसर परिसर में
व्यर्थ पड़ा एक पत्थर का टुकड़ा याद है
जहाँ एक बार जीवन में बाल कटवाया
वह सैलून याद है
जूतों को पार करती हुई
एक भयंकर तलवा गलाऊ ठण्ड याद है
सुने गए कई कवि सम्मलेन कई मंत्रोच्चार
कई सोहर विवाह गीत आदि याद हैं
इस बीच बहुत कुछ याद रखने लायक
मैं और लोग भूल गए
यदि यादों का फंक्शन
सबके लिए ऐसे ही काम करता हो तो
हमारा ज़रूरी दूसरों को व्यर्थ लगता हुआ अकारण याद होगा
इस आधार पर यह सरलीकरण किया जाना अस्वाभाविक नहीं है
कि संसार और समय की
सभी व्यर्थ चीज़ें किसी न किसी को
याद हैं या याद थीं
या याद रहेंगी.