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सरावूं ’क बिसरावूं / निशान्त
Kavita Kosh से
सत्तर-साला
डोकरो-डोकरी
रैंवता राजी-खुसी
चोखै-भलै पक्कै
मकान मांय
पण आं दिनां
बै लागर्या है
बीं नै बधावण
संगमरमर जड़ावण
ईं उन्हाळै री लाय में
बै भौत खपै
सोचूं-
बां री इण हिम्मत नै
सरावूं ’क बिसरावूं ?