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सरिया खेलैते तोहे, दुलहा कवन दुलहा / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पति जुआ खेल रहा था। उसी समय उसे पत्नी की इस इच्छा का पता चला कि वह आम का फल चाह रही है। वह फल तोड़ने गया। वहाँ रखवाले द्वारा पकड़ा गया। रखवाले द्वारा परिचय पूछने पर उसने कहा कि तुम्हारी बहन आम का फल चाह रही है, इसीलिए मैं यहाँ आया हूँ। वहाँ से किसी प्रकार मुक्त होकर फल लिए अपनी पत्नी के पास पहुँचा, लेकिन इस चोरी की सूचना राजा को लग गई। राजा के यहाँ से उसकी बुलाहट हुई, लेकिन एक तरफ उसका सुहाग-रात का आकर्षण उसे वहाँ जाने से रोक रहा है तथा दूसरी ओर राजा का आदेश उसे बुला रहा है। इस द्वन्द्व में वह क्या निर्णय करे, समझ नहीं रहा है। प्रेयसी को प्रसन्न करने के लिए ही उस पर यह आफत आयी है, फिर इस आनंद को छोड़कर जाय कैसे?

सरिया<ref>जुए का पासा; एक खेल-द्युत में प्रयुक्त साधन</ref> खेलैते तोहें, दुलहा कवन दुलहा।
तोर धनि कनिया सुहबी, आम फल माँगे॥1॥
सरिया जे फेंकले दुलरुआ, दाहाँ<ref>दह या पोखरे में</ref> बीच जे गेलै।
चलि जब भेलै दुलहा, आम फल हे तोड़े॥2॥
एक कोस गेलै दुलहा, दुइ कोस गेलै।
तेसरे कोस हे दुलहा, पैसलै<ref>प्रवेश किया</ref> फुलबरिया॥3॥
एक घौर<ref>घोड़ा</ref> तोड़ले दुलरुआ, दुइ घौर तोड़ले।
आबिय<ref>आ गया</ref> गेलो रखबारो हे॥4॥
किय तोहें चोर चंडलबा, किय तोहें गाँव अधिकरबा।
केकर हुकुमे पैसल फुलबरिया॥5॥
नहिं हम चोर चंडलबा, नहिं हमें गाँव अधिकरबा।
तोहरि बहिनो कनिया सोहबी, आम फल हे माँगै॥6॥
नगर भरमिय<ref>घूम घूमकर; घूम-फिर कर</ref> भरमी, गोड़ैता<ref>रखवाला; गोड़ैत; जमींदारों के यहाँ छोटी जाति के लोग, प्रायः दुसाध, रखे जाते थे, जो सिपाही का काम करते थे</ref> हाँक पारे।
कहाँ गेल दुलरुआ दुलहा, राजाजी बोलाबे॥7॥
जिहा<ref>जी; हृदय</ref> मोर घसमस<ref>कसमस करना; इधर-उधर करना</ref> करे, करेजबा मोर हे साले।
ऐसन सोहाग छोड़ि न जैभो देमनमा<ref>दीवान</ref>॥8॥

शब्दार्थ
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