भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सरोदे-शबाना-2 / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Kavita Kosh से
नीम शब, चांद, ख़ुद-फ़रामोशी
महफ़िले-हसती-बूद वीरां है
पैकरे-इल्तिजा है ख़ामोशी
बज़मे-अंजुम फ़सुरदा-सामां है
आबशारे-सुकूत जारी है
चार सू बेख़ुदी सी तारी है
ज़िन्दगी जुज़वे-ख्वाब है गोया
सारी दुनिया सराब है गोया
सो रही है घने दरख़तों पर
चांदनी की थकी हुयी आवाज़
कहकशां नीम-वा निगाहों से
कह रही है हदीसे-शौके-नयाज़
साज़े-दिल के ख़ामोश तारों से
छन रहा है ख़ुमारे-कैफ़ आगीं
आरज़ू ख्वाब, तेरा रू-ए-हसीं