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सरोद-ए-ऐश गावें हम, अगर वो उश्वआ साज़ आवे / वली दक्कनी

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सरोद-ए-ऐश गावें हम, अगर वो उश्‍व साज़ आवे
बजा दें तब्‍ल शादी के अगर वो दिलनवाज़ आवे

ख़ुमार-ए-हिज्र ने जिसके दिया है दर्द-ए-सर मुजकूँ
रखूँ नश्‍शा नमन अँखियाँ अगर वो मस्‍त-ए-नाज़ आवे

जुनून-ए-इश्‍क़ में मुजकूँ नहीं ज़ंजीर की हाजत
अगर मेरी ख़बर लेने कूँ वो ज़ुल्‍फ़-ए-दराज़ आवे

अदब के एहतिमाम आगे न पावे बार वाँ हरगिज़
लिए साये की पाबोसी कूँ गर रंज-ए-अयाज़ आवे

अजब नईं गर गुलाँ दौड़ें पकड़ कर सूरत-ए-क़मरी
अदा सूँ जब चमन भीतर वो सर्व-ए-सरफ़राज़ आवे

परस्तिश उसकी मेरे सर पे होवे सर सिती लाजि़म
सनम मेरा रक़ीबाँ के अगर मिलने सूँ बाज़ आवे

'वली' उस गौहर-ए-कान-ए-हया की क्‍या कहूँ ख़ूबी
मिरे घर इस तरह आता है ज्‍यूँ सीने में राज़ आवे