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सरोवर है श्वसन में / ओम प्रभाकर
Kavita Kosh से
सरोवर है
शवासन में !
हवा व्याकुल
गंध कन्धों पर धरे
वृक्ष तट के
बौखलाहट से भरे ।
मूढ़ता-सी छा रही है
मृगों के मन में !
मछलियाँ बेचैन
मछुआरे दुखी
घाट-मंदिर-देवता
सारे दुखी ।
दुखी हैं पशु गाँव में
तो पखेरू वन में ।
सरोवर है
शवासन में !