भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सर्ग सात / राधा / हीरा प्रसाद 'हरेन्द्र'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रभु लीलाधारी के लीला,
अबेॅ कहौं की भाय।
बसै द्वारिकाधीश द्वारिका,
सागर बीच बनाय॥1॥

रुक्मिणी, जामवंती आरू,
सतभामा के संग।
हँसी-खुशी सब समय बिताबै,
खूब जमाबै रंग॥2॥

पटरानी के संगें खेलै,
चौसर, रास-विलास।
छैलोॅ मुद-मंगल सब्भे ठाँ,
खूबे हर्ष-हुलास॥3॥

लेकिन राधा मन-मंदिर सें,
कभी दूर नै जाय।
मोहन बिना अकेली राधा,
राधा बिनु यदुराय॥4॥

एक दिनाँ के बात सुनाबौं,
कृष्ण द्वारिका धाम।
खूबे नाचै, खुशी मनाबै,
गाबै राधा नाम॥5॥

रानी, पटरानी सब चौंकै,
सुनि कान्हा के बात।
घेरै सब्भैं दौड़ी आरू,
कसी पकड़ै हाथ॥6॥

हमरा सीनी साथ रहै छी,
हर पल आठो याम।
कहियो न´् निकलै छौं मूँ सें,
हमरा सबके नाम॥7॥

की देखै छोॅ राधा मेॅ तों,
गाबै छोॅ गुणगान।
सुनियै राधा रानी के गुण,
बढ़िया करोॅ बखान॥8॥

सेवा के फल मेवा लागै,
हम्हुँ सब जानौं खूब।
हमरा बरतै झरकी आरू,
तोरा बरथौं हूब॥9॥

राधे कैसें याद करै छोॅ,
हमरा सबके बीच।
श्याम बतावोॅ बोलै रानी,
बंशी मुख सें खीच॥10॥

हाँस्से आरू बोलै कान्हा,
ढेर करोॅ नै तंग।
जे गाबै छी आबोॅ सब्भैं
गाबोॅ हमरा संग॥11॥

गुण वृजवाला-राधा वाला,
राखौं कहाँ नुकाय।
मौका पावी यही महीना,
देभौं तुरत दिखाय॥12॥

रहली रानी रोजे ताकें,
जल्दी दहो दिखाय।
कहला सें नैं होथों खाली,
दै छोॅ बात बनाय॥13॥

कान्हा ताकै मौका हर दम,
केना बनतै बात।
रानी आरू पटरानी सब,
करै विकल दिन-रात॥14॥

एक दिनाँ के बात कहीं सें,
नारद बाबा आय।
मौका पाबी छलिया मोहन,
बड़ी जोर चिल्लाय॥15॥

कान्हा के सुनथैं चिल्लाहट,
मचलै तब कुहराम।
दौड़े सब्भे गिरलोॅ-पड़लोॅ,
छोड़ी-छोड़ी काम॥16॥

नारद बाबा भेल चकित तब,
जब देखै ई हाल।
फेरू सोचै कौनें बैरी,
बाँका करतै बाल॥17॥

अगत-भगत छोटका-मोटकाँ,
जब दै छौं चकराय।
हाथ गप्प बड़का के भैया,
सुनहो ध्यान लगाय॥18॥

दलित-दीन दुखहर्त्ता जे छै,
ताके पैबोॅ पार।
नारद बाबा अहिनों ज्ञानी,
खातिर भी दुशवार॥19॥

प्रभु सें पूछै कहाँ कष्ट छौं,
कोय दबाबै माथ।
कोय-कोय गल्लोॅ सें लिपटै
कोन्हूँ पकड़ै हाथ॥20॥

पेट दरद सें विह्वल कान्हा,
कुहरी बोलै बोल।
रानी-पटरानी के आगु
कुछ नै खोलै पोल॥।21॥

खोजी-ढूँढ़ी औषधि लैलक,
पानी लैलक कोय।
परेशान दौड़ै-धूपै सें,
सब्भैं धीरज खोय॥22॥

रानी-पटरानी, नारद भी,
सब्भैं दवा पिलाय।
दरदोॅ सें बेचैन कन्हैया,
तनिक चैन नैं पाय॥23॥

बड़ा कष्ट छौं हमरा मुनिवर!
औड़ै हमरोॅ पेट।
घोॅर बनाबोॅ देखोॅ जल्दी,
छेकै कोन चपेट॥24॥

सुतलका कोय भल्ले जागै,
जौनें ढोंग रचाय,
की मजाल छहुँन ओकरा तों
केन्हौं देभो जगाय॥25॥

घुमै-फिरै जे सब्भे लोकें,
सबके जानै हाल।
एक्खै पल ओकरोॅ सब बुद्धि,
भुतलाबै गोपाल॥26॥

कागा-नागा, अका-बकासुर
सबके काटै कान।
बाल-सखा, संगी-साथी के,
खूब बढ़ाबै मान॥27॥

उनके संकट दूर करै मेॅ,
लगलोॅ छै मुनिराय।
महाज्ञानियो महाजाल मेॅ,
मीन रङ ओझराय॥28॥

नारद जोड़ै हाथ हमेशा,
करलों बहुत उपाय।
दरद दूर केना अब होतै,
तोंही दहो बताय॥29॥

सोछो रोगी के बतलैलोॅ,
होतै कोन दवाय!
सुनै बात नारद बाबा के,
बोलै तब यदुराय॥30॥

हे महामुनि देवर्षि नारद!
छै बस एक उपाय।
भक्त अनन्य अगर चरणोदक,
अपनोॅ देयेॅ पिलाय॥31॥

ठाम्हैं होतै दूर दरद तब,
बोलै पकड़ी पेट।
घबड़ैलोॅ बेकार लिखलका,
कौनें सकतै मेट॥32॥

सुनथैं नारद दरबन मारी,
गेल रूक्मिणी पास।
जे चिन्ता में डुबली बिल्कुल,
झलकै रहै उदास॥33॥

साथैं बगलोॅ मेॅ दोसरकी,
खूब बहाबै लोर।
चरणोदक के बात सुनै जब,
चमकाबै सब ठोर॥34॥

नारद बोलै हे महारानी!
सस्ते छोंन दवाय।
चरणोदक मत देर लगाभो,
जल्दी दहो पिलाय॥35॥

अनटेटलोॅ सब बात सुनी केॅ,
सब रानी घबड़ाय।
है मेॅ के अगुऐतै आगू,
सब्भे मुँह चोराय॥36॥

मुँह नैं ताकोॅ, बातो राखोॅ,
चिन्ता अपनोॅ छोड़।
बोलै नारद नैं लागै छौं,
यैमेॅ लाख-करोड़॥37॥

रुम्क्मिणी बोलै मुनि धन्य छोॅ,
कौनें पाप कमाय।
चरण धोयजौनें कि पिलैतै,
घोर नरक में जाय॥38॥

सब्भे रानी एक्खै स्वर मेॅ,
बात यहॅे दुहराय।
चिन्तित नारद कान्हा आगू,
सबके बात सुनाय॥39॥

आह भरी बोलै मनमोहन,
बढ़िया सें समझाय।
समाचार राधा केॅ मुनिवर!
जल्दी दहो सुनाय॥40॥