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सर्ग - 10 / महर्षि मेँहीँ / हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’

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माया केरोन नैंछै छाया,
कहलाबै छै मायागंज।
जहाँ बसै छै सन्यासीगण,
सब छै हर्खित नैंछै रंज॥ (१)

कुप्पाघाटों केरो महिमा,
की कहियों जे स्वर्ग समान।
खोजी-खोजी शब्द निकाली,
बैठी गेलो करें बखान॥ (२)

देवी बाबा, मेँहीँ बाबा,
सब बाबा के अलग विधान।
सबकें मिललों छै दुनिया के,
ढेरी देशों में सम्मान॥ (३)

देबी बाबा एकांतों में,
बैठी-बैठी करै विचार।
सेवा के फल मेवा पैतै,
जे करतै सेवा सत्कार॥ (४)

मौसम बड़ा सुहाना छेलै,
हवा चलै मौसम अनुरूप।
सूरज कें मेघाएँ दाबी लै,
निकलाई फेनूँ ठंहाइन धूप॥ (५)

आँख मिचौनी देखी-देखी,
बाबा के मन में उल्लास।
मेँहीँ जी कें करै इशारा,
आबै लें झट अपना पास॥ (६)

मेँहीँ बाबा दौड़ी आबै,
देखी बाबा के संकेत।
चरणों में लोटी बाबा के,
चरण धूल झटपट सिर लेत॥ (७)

बाबा बोलै ‘सुनों वत्स तुम,
पहले करके गंगा स्नान।
मिलो अकेले ही कमरे में,
जहाँ रहे बिल्कुल सुनसान’॥ (८)

बाबा साहब के आज्ञा सें,
मेँहीँ बाबा करलक स्नान।
लेने फूल, प्रसाद हाथ में,
ऐलै झटपट समुचित स्थान॥(९)

परमात्मा प्राप्ति के सदयुक्ति,
सूरत-शब्द-योगों के ज्ञान।
बटलाबै मेँहीँ बाबा कें।
जकरा सें संभव कल्याण॥ (१०)

ऊ साधक कत्ते खुशकिस्मत,
जकरा बाबा खुद बोलाय।
सूरत-शब्द-योग साधन विधि,
दै छै क्षण भर में बतलाय॥ (११)

बड़का-बड़का ऋषि-मुनि गण कें,
नादानुसंधान के ज्ञान।
संभव नैंछै होना जानों,
रहै लगैने सब दिन ध्यान॥ (१२)

संतों में सूरत-शब्द-योगे,
कराबै नादानुसंधान।
वहें संत पारंगत होतै,
जकरा ई योगों के ज्ञान॥ (१३)

मेँहीँ बाबा के खुशहाली,
कौने करतै यहाँ बखान।
उनका भी तें ई प्रसाद के,
नैंछेलै अखनी अनुमान॥ (१४)

आगू बाबा राह दिखाबै,
“दृष्टि योग’ का ही अभ्यास।
करते रहना दस वर्षों तक,
पूरी होगी तेरी आस॥ (१५)

मैंने भी बत्तीस बरस तक,
दृष्टि योग रक्खा अपनाय।
इसकी मजबूती से होगा,
पूर्ण काम सुनलो चितलाय॥ (१६)

अभी बताया है इस खातिर,
पास रहेगा यह भी ज्ञान।
जिसके खातिर कष्ट उठाया,
दिल में पूरा था तूफान॥ (१७)

साथ हमेश रहते-रहते,
समझ रहा था तेरी चाह।
फिक्र नींद की जरा नहीं थी,
भूख-प्यास की ना परवाह’॥ (१८)

बाबा के प्रसाद फाबी कें,
मेँहीँ बाबा कें संतोष।
सिद्धि खातिरें भटकै केरों,
नैंरहलै मन में अफसोस॥ (१९)

शब्द साधना विधि के लेली,
 लगलों रहै हमेशा लग्न।
बाबा साहब स्नेह-सिंधु में,
मेँहीँ बाबा आज निमग्न॥ (२०)

जीयै केरों ढंग मधूकरी,
मेँहीँ बाबा केरो मोंण।
जखनी देवी बाबा जानै,
नैंराखै बातों कें गौंन॥ (२१)

सन्यासी के बीच बताबै,
झिड़कै, बोलै गंदा काम।
उत्तम समझो पेटों लेली,
मेहनत करी चुवाबों घाम॥ (२२)

साधु-संत कें भिक्षाटन में,
देखी-देखी बदलै मोंन।
काम करै में समय बितैबै,
अरजै में रहबै नित धोन॥ (२३)

कोन समय में कैसें करबै,
ईश्वर के हम्मे गुणवान।
अर्जन करतें जीवन जैतै,
दूर रही जैतै भगवान॥ (२४)

सद्गुरु पाबै लेली जखनी,
भटकै छेलै रही उपास।
फलाहार नैंसंभव छेलै,
जलाहार पर खाली आस॥ (२५)

आगू बढ़ना मुश्किल लागै,
भूखों सें बेचैन शरीर।
बूझै वाला कोय साथ नै,
मेँहीँ बाबा केरो पीर॥ (२६)

अपनों सुधा तृप्ति के लेली,
सोचे भिक्षाटन के बात।
भूखे-प्यासे कहाँ चमैतै,
कैसे कटतै अब दिन-रात॥ (२७)

पहुँची गेलै दरवाजा पर,
भीखों लें फैलाबै हाथ।
एगो बृधा पुत्र शोक में।
कानै-कल्पै ठोकै माथ॥ (२८)

कुछ दिन पहिनें जकरों बेटा,
चाललाओं गेलोन चे परलीक।
उनका खातिर नैन ची कूचुचु,
शेष अगर कुछ छै तें शोक॥ (२९)

नज़र पड़े मेँहीँ बाबा पर,
बुढ़िया मारै छै फटकार।
करुणा दया जरा नैंतोरा,
तोरों जीवा में धिक्कार॥ (३०)

हमरों बेटा लानी दें तों,
तभिये सुनभो टोरों बात।
साधु-संत छेखो सच्चा तें,
दिखलाबों अपनों औकात॥ (३१)

मेँहीँ बाबा काँपी गेलै,
देखी कें अहीनों संताप।
सोंचे लगलै भीख माँगना,
सबके लेली छै ई पाप॥ (३२)

आगू देखों मेँहीँ बाबा,
चललै देवी बाबा पास।
रास्ता में खर्चा के लेली,
लै छै रुपया कर्ज पचास॥ (३३)

बाबा के सेवा में रहना,
ईंकोन चेलाई यहे विचार।
देवी बाबा साहब छेलै,
इंका ललल केरोन हार॥ (३४)

बाबा पूछै ‘कितने दिन तक,
यहाँ रहोगे मेरे पास’।
मेँहीँ बाबा उत्तर दै छै,
‘रहने का मन है छह मास’॥ (३५)

देवी बाबा साहब पूछै,
‘खर्चा रुपया कर्जा लैके,
ऐलों दै छै भेद बताय’॥ (३६)

बाबा बोलै फटकारी कें,
‘तुमने किया है अनुचित काम।
अपने जीवन में कर्जा का,
लेना नहीं दुबारा नाम’॥ (३७)

अगर अवही तुम मर जाओगे,
कौन चुकायेगा यह कर्ज।
अभी लौट कर वापस जाओ,
लौटा दो तेरा यह फर्ज॥ (३८)

लैलक मोहलत चारे दिन,
रहबै बाबा के गुण गाय।
लौटी जैबै ग्राम धरहरा,
थाम्हें देबै कर्ज चुकाय॥ (३९)

बाबा केरो निर्देशों सें,
रहलै वैठाँ, बेपरवाह।
फेनूं पूछै ‘कैसे होगा,
बोलो तो जीवन निर्वाह’॥ (४०)

बोलै ‘हमरा बाबूजी के,
डेलों छै दूँ बीघा खेत।
हममें उपजा करी जुटबै,
भोजन, कपड़ा, दवा समेत’॥ (४१)

‘इस उपजासे नहीं चलेगा,
तेरे जीवन का सब काम।
करो मेहनत ऐसा जिससे,
झलकेगा पूरा परिणाम’॥ (४२)

उसी खेत में बांस लगाओ,
और लगे केले का बाग।
थोड़ा सा ही लाभ मिलेगा,
अगर लगेगा बैगन-साग’॥ (४३)

मेँहीँ बाबा सोची बोलै,
‘आमद में लगतै दस साल’।
के जानैंछै हाई बीच में,
लूटी लेतै काखनी काल’॥ (४४)
सुनथें डांटै देवी बाबा,
‘सिखलाते हो हमको ज्ञान।
अगर बचोगे सौ वर्षों तक,
क्या खाकर रक्खोगे प्राण’॥ (४५)

मिहनत करना, बाग लगाना,
चुना अपने हाथों घस्स।
अर्थों की भी अगर जरूरत,
रखलों अस्सी रुपये पास॥ (४६)

अगर घते तो फिर ले लेना,
काम करो हरफल चितलाय।
लौटा देना बाँस-बाडी से,
तुमको आमदनी आ जाय’॥ (४७)

चौथा दिन जब चलै धरहरा,
मेँहीँ बाबा आशीष पाय।
विदा समय में दू ठो पुस्तक,
देवी बाबा हाथ थम्हाय॥ (४८)

बेची कें कुछ काम चलाबे,
के दै छै फेनूं निर्देश।
आम्दानी पर लौटाबे के,
नैंभूलै देना आदेश॥ (४९)

मेँहीँ बाबा पहिनें सोंचे,
चिंता सदा भरै के पेट।
बैलों नाकी जीवन जीतै,
नैंहोतै ईश्वर सें भेंट॥ (५०)

देवी बाबा केरो कहना,
‘चालीस बरस तक कर काम,।
धन संग्रह इतना कर लीना,
जो की बुढ़ापे को ले थाम॥ (५१)

फिर तो भोजन-भजन-भाव से,
होगा तेरा ही कल्याण।
एकांत साधना करने से,
पावोगे सदगति परित्राण॥ (५२)

आशीष बाबा केरो लेनें,
मेँहीँ तूरत धरहरा आय।
जीवन के बहुमूल्य समय कें,
दै छै खेती बीच लगाय॥ (५३)

पाठ स्वावलंबन के पढ़ना,
नैंचेलाई उतना आसान।
खेती करना मेँहीँ बाबा
के लेली होलै वरदान॥ (५४)

खेती केरो खर्च जूताबे,
करलक कुछ अध्यापन कार्य।
आदेशों के पालन लेली,
करलक जे करना अनिवार्य॥ (५५)

प्रवचन खातिर मेँहीँ बाबा,
जाबे लगलै दूर-दराज।
शेष समय आश्रम में बैठी,
अपनों करै नियोजित काज॥ (५६)