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सर्ग - 11 / महर्षि मेँहीँ / हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’

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पगडंडी केरो बगल, बड़का उगलों कास।
कुहरा आरू ओस में, लगै नहैलों घास॥ १॥

ठिठुराबै सबके वाद, खोजे टिकखों धू।
निकलै सूरज के कुरान, शोभा फार्म अनूप २॥

मन मोहै मौसम सद्द, भरै खेत खलिहान,
नया साल के आगमन, भरलों खेते धान ३॥

उचचो-टीकर भूमि पर, लंबा-लंबा ईख।
सन तेरह के जनवरी, तेरह ही तारीख ४॥

वार्षिक अधिवेशन रहै, जगह रहै कटिहार।
अधिवेशन में भाग लै, बाबा परम उदार ५॥

वै अवसर पर धरहरा सें आबे गुरुदेव।
देवी बाबा आसरा, नाव रहै जे खेव॥ ६॥

देवी बाबा खूब खुश, दै दै आशीर्वाद।
सत्संगों के बाद जब, चलै मुरादाबाद ७॥

भागलपुर आबी कहै, थोड़ों देरी बाद।
मेँहीँ तुम भी साथ में, चलो मुरादाबाद॥ ८॥


मेँहीँ बाबा जाय लें, जब होलै तैयार।
‘कब तक ठहरौगे वहाँ, बोलो जरा विचार’ ९॥

बाबा केरों प्रश्न पर, बोलै पूरे माघ।
मेँहीँ बाबा खुश रहै, देखी कें अनुराग १०॥

लेकिन कौने जानतै विधि के सही विधान।
रहै मुरादाबाद में, तीनें दिन लें जान ११॥

देवी बाबा देखि कें, त्रुटि पूर्ण कोय काम।
बिगड़ी गेलै ज़ोर से, भेजै फेनूँ धाम १२॥

आबी गेलै धरहरा, होलै जरा अवाक।
लेकिन कुछ दिन बाद में, ऐले फेनूँ डाक १३॥

बाबा केरों पत्र कें, लै छै अपनों हाथ।
बाबा पूछै ‘माघ तक, रहा नहीं क्यों साथ॥ १४॥

मेँहीँ बाबा पत्र में, करै क्षमा के मांग।
इनका तें लागलो रहै, बाबा केरोन डांग १५॥

कई महीना बाद तक, बाबा दै छै ध्यान।
लिखै दोसरो पत्र में, ‘दिया क्षमा का दान १६॥

जब-जब तेरा मन करे, आओ नि:संकोच।
मेरे बातों पर कभी, नहीं करो कुछ सोच १७॥

क्षमादान के बाद भी, वै सालें दू वार।
दर्शन खातिर पहुचललै, बाबा के दरवार १८॥

आगू निश्चित रूप सेन, सालों में एक वार।
दर्शन तें करतें रहै, जाय-जाय दरवार १९॥

बाबा पूछै “कब तलाक रहना है इस वार”।
सोची कें बोलै समय, पर लागै लाचार २०॥

निर्धारित ऊ समय के, पहिने दिन दू-चार।
कैसे कें मालूम नै, बाबा दै दुत्कार २१॥

नैंकरने पूरा समय, बीछै लौटीआय।
बाबा ऊ दुत्कार सेन, नई कहियों घबदाय २२॥

खाली सोचे जब कभी, जैबै बाबा पास।
लौते केरोन कुछ समय, नैन बतलैबै खास २३॥

सन सोलह मैनेक दिन, गोरखपुर जब जाय।
देवी बाबा खत लिखै, यहाँ मिलो तुम आय २४॥

मेँहीँ बाबा खत पढ़ी, आबै छै नजदीक।
यहाँ रहौगे कब तलक, वहें प्रश्न छै ठीक २५॥

मेँहीँ बाबा यै घड़ी, रहलै चुप्पी साध।
देवी बाबा कें लगै, शायद ई अपराध २६॥

जाना छेलै जोंन दिन, बाँधी कें सामान।
आज्ञा मागै जाय कें, जे बाबा के प्राण २७॥

बाबा पूछै ‘चल दिया, जल्दी में हो लाल’।
‘हाँ’ कहने आगू बढे, मेँहीँ जी तत्काल २८॥
उत्तर सुनथे लाल के, मेँहीँ बाबा आत,
बैठे पीठी पर चढ़ी, मन गेलै चकराय २९॥

‘जाने दूंगा मैं नहीं, कह देता हूँ साफ।
लाओ उसको सामने जो कर दे इंसाफ ३०॥

‘नैंजैबै बाबा कभी बातों कोनों टार।
बाबा सेन तनियों अलग, नैंहमरों संसार ३१॥

अगला दिन गुरु चरण पर जहाँ झुकाबै माथ।
अब तुम जाओ बोलकर, सिर पर फेरै हाथ ३२॥

आज्ञा पाबी धरहरा, वापस बाबा आय।
भजन-भाव-सत्संग में, लै छै लापटाय ३३॥