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सर्ग - 13 / महर्षि मेँहीँ / हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’

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मेँहीँ बाबा परिवारों के,
स्थिति;यों केरोन पूर्ण बखान।
काही-काही पर होलाइ जकरा,
लिखलों यहाँ जरूरी ॥१॥

पहिनलों मटा फूलमाती जे,
नि:संताने स्वर्ग सिधार।
जनकवटी के मेँहीँ बाबा,
जिनका जानैंछै संसार ॥२॥

झूलन दीदी केरो चर्चा,
पहिन्हैं हॉलों ची विस्तार।
जोनें अपनों सेवा के बल,
बदलै बाबा के संसार ॥३॥

दयावाटी टैसरकी माता,
जकरा छेलै पुत्री चार।
तीन समाबै काल गाल में,
एगो के छैलोन परिवार ॥४॥
पुत्र चार गो छेलै उनका,
ऊपर से जे छेलै तीन।
तीनों के बचपन में जानों,
अगू सेन लै कारे चीन ॥५॥

एगो बचलै धरती पर जे,
नाम लिखाबै डोमन लाल।
हूनी संतमत के अनुयायी,
छेलै तें बिलकुल खुशहाल॥६॥

किंकर जी नामों सेन जानै,
उनको यहे बादललो नाम।
अखनी तक हुनियों नैंरहलै,
गेलै अपनों पावन धाम ॥७॥

दू ठो खाली परिवारों में,
दो हनोन्न केरो सुंदर भाव
मेँहीँ जी में सहनशीलता,
जग कल्याणों केरो ख्वाव॥८॥

वोही ख्वावों केन धरती पर,
दै केरोन लेली अंजाम।
मेँहीँ बाबा तन-मन-धन सेन,
लगले रहलै आठो याम ॥९॥

देवी बाबा ऐ लोकों से,
चललो गेलै जब परलोक।
कुचछू दिन तक छैलोन रहलै,
सबलोंगो में पूरा शोक ॥१०॥

धर्मे छै जकरों अवलंबन,
उनकोण उत्तम सदा विचार।
पर लोकाचारी में भूलै,
‘छेकै ई नश्वर संसार’ ॥११॥

मेँहीँ बाबा चाहें लगलै,
भ्रमनकरी केन करे पछार।
दुनिया केन बलताना छेलै,
मानव जीवन केरो सार ॥१२॥

सोलहवां अधिवेशन जखनी,
टिकाइली पूर्णियान करवाय।
भ्रमन मंडली गठन करै के,
लैची बाबा मों बनाय ॥१३॥

संगठनों में नन्दन साहब,
दास हरंगी ध्यानानन्द।
धीरज, मोहन यदुनाथों सेन,
सब के मिललै परमानन्द॥१४॥

साधु त्रिचन्नापली (केरल)
वै में छेलै बड़ा उदार।
सच्चा ज्ञानों के खोजों में,
भटकै छेलै द्वारे-द्वार ॥१५॥

ज्ञान खोज करने ऊ गेलै,
दक्षिण सेन उत्तर कश्मीर।
वस्त्रहीं देहों के आदी,
खूब सताबै उनका पीर ॥१६॥

आगू हुनी धरहरा ऐलै,
करें लगै पूरा सत्संग।
जाड़ा-गर्मी सहतें-सहतें,
बाबा चेलाई पूरा तंग ॥१७॥

आग्रह करला पर गुरूदेवेन,
दै छै भजन-भजन-भेद बतलाय।
दू बरसों तक रहै धरहरा,
फेनूँ गेलै केरल आय ॥१८॥

भ्रमन मंडली रेलों द्वारा,
ऐलै जहाँ अररिया कोट।
पुलिस इन्सपेक्टर वहाँ मिलै,
जकरा में कुछ छेलै खोट ॥१९॥

गोस्सा सें बौवैलों बाबा,
हमरा सब जे लैछी नाम।
ऊ सब्भे बेकारे छेकै,
ऊ सबके नैंकुछ्छू काम ॥२०॥

मेँहीँ बाबा नम्र भाव सें,
करलक तब पूरा अनुरोध।
‘कल के सत्संगों में होगा,
इन तथ्यों का पूरा वोध’ ॥२१॥
कल के अगला सत्संगों में,
मिललै तब पूरा संतोष।
सूरज के उगलो सें हटलै,
घासो पर के सब्भे ऑस ॥२२॥

करै बहुते प्रश्न आगू में,
सब प्रश्नो के उत्तर पाय।
पश्चातापों केरो आँसू,
उमड़े लगलै आँखी आय ॥२३॥

आगू बैतानी सें होलों,
फारबिसगंज गेलै आय।
कटिहारों होलों भागलपुर,
मिरजानों में धूम मचाय॥२४॥

भ्रमण मंडली के आग्रह पर,
करलक कुछ दिन लेली बंद।
भ्रमण मंडली हरखित छेलै,
छेलै सबके मों बुलंद ॥२५॥

मिरजानों में एक महीना,
सत्संगों के करै प्रचार।
फैली गेलै बाबा केरोन,
यश लागै पूरा संसार ॥२६॥

चार-पाँच अधिवेशन बाबा,
चार-पाँच जग्घे करवाय।
दीन-हीन आरू जे निर्धन,
भागीधारी सबके भाय ॥२७॥

अधिवेशन के बाद मंडली,
घूमे लगलै ग्रामे-ग्राम।
भटगामा, बगहा घूमै में,
छब्बीस व्यक्ति केरो नाम ॥२८॥

वहें क्रमों में बाबा चाहै,
ध्यान-साधना-शिविर कराय।
वै शिविरों में साधु-संत केन,
खबर करी लेबै बोलाय ॥२९॥

नन्दन साहव मानी गेलै,
बाबा केरोन उचित विचार।
ग्राम धरहरा पर ही रहलै,
आयोजन के पूरा भार ॥३०॥

वै शिविरों में जुटलै साधक,
ध्यान करै लें जब चालीस।
ध्यान-साधना चलतें रहलै,
जानी लें पूरा दिन तीस ॥३१॥

ध्यान-साधना के समाप्ती पर,
दै छै पूरा-पूरा दान।
वै दानों में भरलों छेलै,
देवी बाबा के सम्मान ॥३२॥

दुबारा बत्तीस ईस्वीं में,
वहिने शिविरों केरो भार।
ग्राम धरहरा पर ही रहलै।
मिली करै सबभें स्वीकार ॥३३॥

सादक छेलै वहाँ पचासी,
कार्यक्रम भी बड़ा विशाल।
‘राधा-स्वामी’ मत के वै में,
सामील छेलै शिवव्रत लाल॥३४॥

रहै आग्रा मीन भंडारा,
आमंत्रण के बात बताय।
थोड़े दिन ही ध्यान शिविर में,
हुनियों अपनों समय बिताय॥३५॥

मेँहीँ बाबा व्योवृद्ध केन,
राखे चाहै पूरा माह।
पर उनकोण समझी लाचारी,
छोड़िए दै छै आगू राह ॥३६॥

अहीनों शिविरों के आयोजन,
पदलों चेलाई कहाँ दिखाय।
करै धरहरा के शिविरों के,
महर्षि शिवव्रत बड़ी बड़ाय ॥३७॥

मेँहीँ बाबा करै विदाई,
उनका समुचित दै उपहार।
मेँहीँ बाबा केरो महिमा,
अदभुत-अनुपम परम आपा॥३८॥

संतमत केरो इक्कीसवाँ,
अधिवेशन लें जगह तलाश।
भागलपुर के कुसापुरों में,
करलक बाबा करी प्रयास ॥३९॥

बिहार प्रांतीय सत्संग के,
पूर्ण सफलता पर उत्साह।
उत्तरी-पश्चिमी भारज के,
भ्रमण करै के पूरा चाह ॥४०॥

हरिद्वार-जम्मूकश्मीर तक,
सिंघ, कराँची सें मूलतान।
लाहौर के मोंन बनाबै,
जे अखनी छै पाकिस्तान॥४१॥

साथे लै छै जे सतसंगी,
सब्भे छेलै बेपवाहार।
कालिचरण जी (काढ़ा गोला),
पिपरा के ढोढाई साह ॥४२॥

एगो रहै मोरष्ंडा के,
गुसाइ श्री हरंगी दास।
भंगहा के कालाचंद जी,
चारों ऐलै बाबा पास ॥४३॥

चारों सतसंगी के साथे,
करै धरहरा सें प्रस्थान।
भागलपुर के खूब लाल कन,
प्रथम रात भोजन-जलपान॥४४॥

अगला दिन गुरूदेव चलै छै,
सीधी-सीध मुरादाबाद।
देवी बाबा केरो साथे,
नन्दन बाबा आबै याद ॥४५॥

वहाँ ठहरलै छह दिन पूरा,
सप्तम दिन आगू के ध्यान।
अमृतसर के धर्मशाला में,
लै छै ठहरै के स्थान ॥४६॥

श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर,
गुरुद्वारा हरीमंदिर जाय।
जालियाँ वाला बाग घूमी केन,
लेलक सब्भे नैन जुड़ाय ॥४७॥

ट्रेनों सें लाहौर पधारै,
थाम्हैं स्यालकोट भी आय।
वहाँ धर्मशाला में ठहरी,
सत्संग करै गुरुगुण, गाय॥४८॥

ब्रह्म समाजों केरो लोगों,
बैठे सत्संगों में आय।
ब्रहम समाजों भी सब्भे केन,
सत्संगों ले घोर बुलाय ॥४९॥

स्यालकोट सें आगू बढ़लै,
पहूँची गेलै जब कश्मीर।
कश्मीरो के शोभा देखी,
मोंन धरै तनियों नैंधीर ॥५०॥

आठ दिना तक कश्मीरों में,
करतें रहलै जब सत्संगों।
सहयोगी सतसंगी सबकेन,
मन में भरलों रहै उमंग ॥५१॥

मरी गिरी पर्वत पर होलों,
रावल पिंडी में ठहराव।
देखें गेलै लक्षशिला जे,
दर्शन केरो छेलै चाव ॥५२॥

गंगा कुंड नरसिंह मंदिर,
आरू देखै गढ़ प्रह्लाद।
साथीगण के मन मंदिर में,
देखी लें पूरा आल्हाद ॥५३॥

सिंध रावल पिंडी सेन,
शिकारपुर नई छोड़े कोय।
सुवह-शाम के सत्संगों में,
भक्ते लै छै मन केन ढोय॥५४॥

सत्संगों के बाद वहाँ से,
चलै करांची ध्यान लगाय।
मूल निवासी कच्छ वहाँ के,
सत्संगों में मोन रामाय॥५५॥

भ्रमन करे विशाल सागर तट,
वै में डूबेन चाहैं मों।
जे सागर मैं रहै समाहित,
हीरा-मोती अहीनों धोन ॥५६॥

तट के वासी शाम-सवेरे,
सागर जल में आबी रोज।
बालू में बहूमुल्य रत्न के,
थक्के नई छै करते खोज॥५७॥

सागर के जल खारा अहीनों,
पीला सेन तेन जी मिचलाय।
खीलों नई जाइथों ऊ चावल,
सागर जल में अगर सिझाय॥५८॥

मेँहीँ बाबा केरो जेरोन,
डुबकी मारी लै आननद।
सागर तेन दै लै, छै,
तट के वासी के सुखकांड॥५९॥

चलै मंडली वै थामों सें,
लाहौर दें कें हरिद्वार।
धर्मग्रंथ में वर्णन मिलथौ,
साधु-संत केरों आधार ॥६०॥

ऋषिकेशों के गंगातट पर,
मंडली करै छै सत्संग।
गंगा मैया के महिमा तें,
पर्वत ऊपर चढे अपंग ॥६१॥

वाट-पिट-कफ मेटनहारा,
गंगा मैया केरों जोंल।
अंधा कें आँखों दें दै छै,
निर्बल कें दें दै छै बोल ॥६२॥

लक्ष्मण झूला, स्वर्गाश्रम के,
दर्शन सें होलै संतोष।
जगह-जगह सत्संगों होलै,
मन मैं नई रहलै अफसोस॥६३॥

ऋषिकेशों में राती ठहरै,
भोरे चलै पुन: हरिद्वार।
वहाँ करै सत्संग रात में,
जुटै वहाँ पर भीड़ अपार ॥६४॥

बड़ी सबेरे हाइद्वारों सें,
आबी चलै मुरादाबाद।
नन्दन साहब आबी मिललै,
पावै छै जैसे संवाद ॥६५॥

चलै मंडली साथ धरहरा,
गोड़-हाथ-मन चेलै चूर।
बाबा केरों दर्शन लेली,
जनता सब जूटै भरपूर ॥६६॥

ईसवीं तीसों में कर बाबा,
सत्संग भवन पुन:निर्माण।
सतसंगी लोगो के खातिर,
करै बड़ा भारी कल्याण ॥६७॥
अस्सी साल पहिलको खर्चा,
चेलै लगभग तीन हजार।
सब खर्चा के मेँहीँ बाबा,
लेनें छेलै सिर पर भार ॥६८॥

भवन चार सौ लोगों लेली,
बैठे में सबके आराम।
सतसंगी भवनों में बैठी,
भूलै दुख-तकलीफ तमाम॥६९॥