सर्ग - 14 / महर्षि मेँहीँ / हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’
देवी बाबा जब तक रहलाई, मेँहीँ बाब घूमी-घूमी।
सत्संगों में रमलों रहलाई, ई धरती केन चूमी-चूमी ॥१॥
परिनिर्वाण हुवै बाब के, इनको बादलाई जरा इएरादा।
शब्द साधना लेली रहलाइ, कुछ एकांत खोज में ज्यादा॥२॥
साहवगंजों के पर्वत पर, पहूँची गेलै मों बनैने।
कुछछ दिन तक रहलै वैठाँ, जैसे-तैसे ध्यान रमैंने॥३॥
जगह-जगह में रहै जानवर, जंगल बड़ी भयावह छेलै।
पर बाबा के ई बातों के, तनियों टा नैंचिंता भेलै॥४॥
अस्सी बरस पहिलकोण जंगल, हुंमदे बाघों, सिंह दहाड़े।
एकांत साधना के लेली, बीहड़ वन में अडडी गाड़े॥५॥
छेलै निर्जन वातावरणों, लेकिन बाबा नई घबड़ेलै।
पता मगर नैंकी कारण से, लौटी बाबा वापस ऐलै॥६॥
पुन: खोज में गढ़ मुक्तेश्वर, आगू बढ़लै गेलै सारण,
घूमतें-घूमतें आबी गेलै, नजदीके छेलै चम्पारण॥७॥
कोनों भी जगघों नैंजचलै, घूरी-फिरी भागलपुर आबै।
मायागंज मुहल्ला केरोन, ‘गुफा’ बड़ा इनका मन भावै॥८॥
गंगा मैया केरों तट पर, कुप्पाघाट कहाबै वाला।
गुफा भयाभय साधु-संत के, लेकिन मों रामाबै वाला॥९॥
कुप्पाघाट बसै जे संतों, सब्भे स्वरगों के अधिकारी।
गंगा मैया अपना शरने, राखी-राखी दै छै तारी॥१०॥
पतित पावनी गंगा केरों, दर्शन जकरा रोजे होतै।
ऊ सबके पापों केन मैया, अपना गरजो से ही धोतै॥११॥
ऊ पावन जगघों केन बाबा, पहुंची पहिनें साफ कराबै।
छतरू सेवक साफ करै में, बड़ी पुरानों हड्डी पाबै॥१२॥
वही गुफा में सुरंग ढेरी, ऊ सुरंग सेन आगू जैथे।
मेँहीँ हरखित होलै, एगो सुंदर कमरा पैथे॥१३॥
वै कमरा मैं मेँहीँ बाबा, पहुँची एनआईटी ध्यान लगाबै छै।
कुचछू दिन के बाद वहाँ पर, सन्यासी एगो आबै छै॥१४॥
ऊ सन्यासी कुछ दिन पहिने, वै सुरंग में रहलों छेलै।
गंगातट कुप्पाघाटों के, सुख-दुख सब्भे सहलों चेलै॥१५॥
ऊ सुरंग में स्वाद रहै जे, ध्यानों के सब्भे ठो चाखी।
इक दीवारों में गाड़ी कें, गेलो छेलै रुपया राखी॥१६॥
बाबा सेन तब आज्ञा माँगी, सन्यासी जी भीतर गेलै।
रखलों चेलै जे रुपया ऊ, तुरंत निकाली बाहर गेलै॥१७॥
एक महातमा फेनूँ आबै, रहै गुफा के वोही वासी।
तकदीरों के मगर मारलों, मुख मण्डल पर रहै उदासी॥१८॥
महान आत्मा छेलै उंकोन, हनुमान नाम से जानी लें।
महावीर बजरंगवाली के, सेवक छेलै ऊ मानी लें॥१९॥
भागलपुर के दारोगा जी, बात कहीं से जानी लै छै।
हड्डी निकलै जे सुरंग से, खतरा ठाम्हैं मानी लैछै॥२०॥
धावा बोलै तब बाबा पर, हड्डी लें कें जाँच कराबै।
छेलै हड्डी बहुत दिनाँ के जानी शंका दूर भगाबै॥२१॥
अँग्रेजी सरकार वहाँ पर, आबी कहियों धोंस जमाबै।
कभी क्रान्तिकारी जानी कें, कुछ सें कुछ आरोप लगाबै॥२२॥
भागलपुर के कभी कमिश्नर, ऐलै घूमी-फिरी गेआली।
मुस्लिम संप्रदाय वाला भी, आबी कुछछू खेला-खेलै॥२३॥
‘यह तो कब्रिस्तान हमारा, यहाँ जमे हो कैसे आकर।
यह तो अत्याचार तुम्हारा, दम लेंगे हम तुम्हें भगाकर॥२४॥
भागलपुर के जिलाधिकारी, के पेशकार वौझै छेलै।
डांट लगाबै जब ज़ोरों से, तब सब मुँह लतकैने गेलै॥२५॥
वाधा ढेरी एले गेलै, पर क्कुहह नई बाबा घबड़लै।
इनलिन भक्ति-भाव देखी कें उत्पाती भी खुद शरमैलै॥२६॥
सूरत –शब्द योग साधन तेन, डेढ़ बरस तक कर्टेन रहलै।
माथा ऊपर सब वाधा कें, बाबा हरदम साहते रहलै॥२७॥
आत्मा ज्ञान कें प्राप्त करे कें, परमात्मा सें बाबा मिललै।
ब्रहमतेज सें चमकें लगलै, मुख-मण्डल फूलों रङ् खिललै॥२८॥