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सर्ग - 3 / महर्षि मेँहीँ / हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’

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दौरे अध्ययन केरों जखनी,
मेँहीँ रहलै सदा सुपात्र।
सब्भे जानैंपढ़ै-लिखै में,
मेँहीँ जी छै बढ़िया छात्र॥ (१)

समय परीक्षा के जब ऐलै,
मेँहीँ तें होलै तैयार।
सोची-समझी खूब लिखलकै,
सब प्रश्नों के उत्तर सार॥ (२)

चार जूलाई अँग्रेजी के,
लिखना छेलै जे कुछ शेष।
‘बिल्डर’ कविता चार पंक्ति के,
व्याख्या के छेलै निर्देश (३)

चार पंक्ति अँग्रेजी कविता,
जकरों करना दै गुणगान।
पढ़ी-पढ़ी अनुमान लगइयै,
की छेलै वै में तूफान॥(४)

“ for the structure that we raise
Time is with material’s filled,
Our to-day and yesterday.
Are the bricks with we build ?” (5)

व्याख्या लिखतें-लिखतें उठलै,
मन-मंदिर बीचे वैराग्य।
चक्र नियति के कखनी चलतै,
बदली देतै ककरॉ भाग्य।। (६)

ईश्वर के माया छै अदभुत,
मुश्किल करना लगै बखान।
बचपन सें वैराग्य-भावना,
के करतै केना अनुमान॥ (७)

उत्तर पुस्तिका के अंत में।
लिखलक तुलसी के चौपाय।
‘देह धरे को यह फलु भाई,
भजिया राम सब काम बिहाय’॥ (८)

ईश भक्ति के अवरल धारा,
के उठलै मन में संवेग।
प्रभु-सत्ता कण-कण में व्यापित
देखै छेलै डेगे-डेग॥ (९)

दुनिया केनरों माया बंधन,
झलकेन लगलै सब बेकार।
ब्रहम सत्य, संसारे मिथ्या,
सांसारिक सब कुछ निस्सार॥ (१०)

परीक्षा हाल के वीक्षक लग,
नम्र भाव सेन बोलै जाय।
‘मे आई गो आउट सर जब,
वीक्षक गेलै कुछ घबड़ाय॥ (११)

वीक्षक के की मालूम रहै,
मेँहीँ के दिल के आवेग।
वीक्षक मूँह सेन सुनथे ‘जाओ’,
मेँहीँ तुरंत बढ़ावै डेग॥ (१२)

पत्नी सेन आदेश यही रङ्,
गौतम ले केन गर सेन जाय।
राह वहें वीक्षक सेन पूछी,
मेँहीँ भी लेलक अपनाय॥ (१३)

मानव जेवण सफल बनावें,
क्रेन पूर्ण ज्ञानों के खोज।
अनजानी राहों पर हरदम,
बढ़थे रहलै रोजे-रोज॥ (१४)

उल्टी केन नई ताकेयन कहनू,
हरदम आगू बढ़ले जाय।
बीहड़-जंगल अगर मिलै तें,
बैठी केन्हो रात बिताय॥ (१५)

सदा-सदा के लेली होलै,
विद्यालय शिक्षा के अन्त।
मेँहीँ बाबा चलें लागलै,
जेना सब्भे साधु-सन्त॥ (१६)

जंगल-जंगल, पर्वत-पर्वत,
खोजे मेँहीँ सदगुरू संत।
सद्गगुरू मिलना बड़ा कठिन छै,
खोज करों जीवन पर्यंत॥ (१९)