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सर्ग - 4 / महर्षि मेँहीँ / हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’

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चार जुलाई जीवन में सेन,
त्यागै सदा परीक्षा कें।
परम ब्रहम में मों रमाबै,
छोड़ी आगू शिक्षा कें॥ (१)

दार्जिलिंगके ओर निकललै,
बढ़ते, रहलै शाम तलक।
किशनगंज में घुमतें देखै,
एक पुलिस जब एक झलक॥ (२)

आदर सेन बोलाबै उनका,
भोजन भी करबाबै छै।
पर खैतें भोजन में मरलों,
नजर पतिंगा आबाए छै॥ (३)

मेँहीँ बाबा ऊ भोजन कें,
कुत्ता आगू फेकै छै।
पुलिस कर्मचारी चिंता में,
ई घटना जब देखै छै॥ (४)

चूड़ा-दही खिलाबै खातिर,
सब्भे फेनूँ बोलै छै।
ईश्वर के इच्छा जानी नै
बाबा के मन डोलै छै॥ (५)

ब्रह्म मुहूर्त जाखनिएन चेलाई,
बाबा आगू बढ़लो छै।
जठरानल उत्पात मचाबै ,
सूरज माथा चढ़लो छै (६)

आम वृक्ष के नीचे गिरलों,
फलाहार लें भूख मिटाबै,
पीलक फेनूँ ठंडा जल॥ (७)

एगो छाता पूंजी उनको,
उनका हाथे पड़लो छै।
भक्ति भाव के शीतल छाया,
देलें आगू बढ़लौ छै॥ (८)

उनका देहों पर छै धोती,
मन उमंग सेन भरलों छै।
पिन्हने छै खाली लंगोटी,
संकल्पो कुछ करलोन छै॥ (९)

एक साधु राहों में मिललै,
बात पूछै घरछानी कें।
की-की छै संकल्प हृदय में,
खुश होलै सब जानी कें॥ (१०)

आगू में आबी स्नायासी,
बोलै प्रभु के गाँ कारों।
बच्चों तो पुत्र भवानी के,
कुछछू अपनों दान करों॥ (११)

उनका जिम्मा खाली छटा,
वोहों ठो दान करालकै।
हाथ जोड़ी साधु-संतों कें,
आगू के राह धरलकै॥ (१२)

वस्त्र दान कुछ होना चाही,
साधु कहै छै छेकी कें।
कंधा पर के धोती दै छै,
साधु दाङ छै देखी कें॥ (१३)

धोती तब लौटाबै लगलै,
बाबा नैंस्वीकार करै।
की लीला ची उनको जौंने,
सबके नैया पार करै॥ (१४)

उल्टी कें देखै छै पीछू,
दूर जरा सा गेला पर।
नैंझलकै तें मन-मन सोछै,
ईश-कृपा छै चेला पर॥ (१५)

साधु रहै परमेश्वर जानों,
बात बड़ी अलबता छै।
धरती के कोना-कोना में
सचमुच उनके सत्ता छै॥ (१६)

ठेकेदार रहै आगू जे,
दरिया पंथी कहलाबै।
एक रात मेँहीँ वोही ठाँ
अपना मन कें बहलाबै॥ (१७)

ठाकुरगंजे एक दरोगा,
बाबा मन कें लै जीती।
वहीं प्रेमवश समय कीमती,
दस-दस दिन गेलै बीटी॥ (१८)

उक्त दरोगा के सलाह सें,
रिविलगंज तक आबै छै।
रामानन्द पहिलको गुरू के,
आश्रम बीचे पाबै छै॥ (१९)

रिविलगंज दू-चार महीना,
गुरूवर साथ बिताबै छै।
जोतरामराय फ़ानून गुरू के,
साथे, साथे आबै छै॥ (२०)

लगभग छह सें सात महीना,
वहीं बिताबै सातों में।
मन तें पहिन्हैं देने छेलै ,
गुरूवर केरो हाथों में॥ (२१)