सर्ग - 5 / महर्षि मेँहीँ / हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’
चार रे जुलाई जबे परीक्षा भवनमा सें,
मेँहीँ नाहीं आबै घरे, सुनो श्रोता भइया।
पिता बाबुजन गिरै भूमि पर मुरझाई,
चिंता के समुद्र दूबै सुनो श्रोता भइया।
खोजै छै भवनमा में, खेतें खलिहनमा में,
लागै नाहीं टैर काही, सुनो श्रोता भइया।
गेलै जहाँ आसों पर, शिक्षक आवासों पर,
रहलै निराशों पर, सुनो श्रोता भइया। (१)
नददी नाला पर भएलै, जोराम राम गेलै,
देखी कें प्रसन्न भेलै, सुनो श्रोता भइया।
पिता जी कें दे खेया जरबे, माथा तेकै आबी ताबे।
गुरू कें बताबे बात, सन श्रोता भइया।
वैरागों सें मुक्ति पैतै, घरे केना लौटी जैतै,
सोचे राजी करै के उपाय श्रोता भइया।
रहै तांत्रिक बंगाली, गल्ला में रुद्राक्ष खाली,
ओकरा सें अरज सुनाबै श्रोता भइया। (२)
हमरा अपार धनें, पुत्रो लें वेचनी माने,
पुत्रों कें लौटाबै लेली कहै श्रोता भइया।
लाख समझाबै छेलै, ममता देखाबै छेलै,
पर नैंडिगाबै मनें, सुनो श्रोता भइया।
रामों के भजनमा में, स्वामी के शरणमा में,
रहै के आसीस माँगै, सुनो श्रोता भइया।
पिता जी तें हारी-पारी, आबी गेलै घर-द्वारी,
पुत्रों के तें ममता छै जारी श्रोता भइया। (३)
स्वामी रामानन्द जहाँ, माता एगो रहै वहाँ,
उनको बचन बड़ी भाबै श्रोता भइया।
माता केरों प्रवचन, सुनैंसब ज्ञानी जन,
अरथ बुझाबै सब भारी श्रोता भइया।
सुनी-सुनी गुरूवानी, माता कें काविल जानी,
रामानन्द स्वामी बिसराबै श्रोता भइया।
मेँहीँ के विवेक जागै, संतों कें खोजें में भागै,
दरिया पंथी कें त्यागै सुनो श्रोता भइया। (४)