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सर्ग - 6 / महर्षि मेँहीँ / हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’

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स्वामी रामननदों लेगाँ,
पत्र एक ठो आबै छै।
पूज्य पिता जी के पत्रों में,
प्यार हमेशा पाबै छै॥ (१)

लिखै पिता जी सिकलीगढ़ सें,
दूर जरा सा जानी लें।
चम्पानगर बनैली ड्योढ़ी,
आना छै ई ठानी लें॥ (२)

ठाकुर कृष्ण सिंह षठशास्त्री,
वै ड्योढ़ी में एलो छै।
दर्शन लेली दर्शक केरो,
जमघट पूरा छेलों छै॥ (३)

हम्हूँ यहीं सें सीधे जैबै,
तहूँ वही पर आबी कें।
अपनों जीवन धन्य बनाबो,
उनको दर्शन पाबी कें॥ (४)

पिता पुत्र दोनों तब ऐलै,
समय सुदिन, शुभ जानी कें।
दर्शन सें मन तृप्त करलकै,
ईश्वर उनका मानी कें॥ (५)

दर्शन के उपरांत वहाँ पर,
कुछ पंडित कें देखै छै।
मेँहीँ जी कें बच्चा जानी,
आगू आबी छेकै छै॥ (६)

कर्ज देव ऋण, पितृ ऋण, ऋषि ऋण,
तोरा पर तीनों बाँकी।
अभी देव ऋण बिना चुकैनें,
स्वर्ग कहाँ राखों टाकी। (७)

मेँहीँ बाबा विवाद-छोड़ी,
कहै स्वर्ग नैं अभिलाषा।
सिर्फ परम पद पाबै केरों
राखै छी जोगी आशा॥ (८)

पंडित बोलै मातु पिता के,
कर्जा माथा ऊपर छै।
कहाँ स्वर्ग के बात यहाँ पर,
शरण जरा नैं भू पर छै।। (९)

सब्भे बातें ‘यथार्थ’ बोलै,
षटशास्त्री जी सन्यासी।
बबुजन लाल जरा सा पूछै,
रहै शांत जे मृदुभाषी॥ (१०)

सब्भे बात यथार्थ होतै,
जरा समझ नैं आबै छै।
षटशास्त्री जी हँसी-हँसी कें,
सब्भे अर्थ बुझाबै छै॥ (११)

कहै पिता श्री मेँहीँ जी सें,
त्याग घरो के करना छौ।
यै बातों ले तोरा कहनूँ,
हमरा सै नैं डरना छौं॥ (१२)
 
एक बार आग्रह मानी कें,
साथे अपनों गाँव चलों।
जै गाछी तर बैठे छेल्हो,
ऊ गाछी के छाँव चलो (१३)

पास-पड़ोस परिजन सबसें,
मिली-जुली कें आइहों तों।
फेनूँ गुरू सेवा से अपनों,
जीवन सफल बनईहों तों (१४)

मानी कें आदेश पिता के,
मिललै सबसेन गामों में।
कुछ दिन रहलै फेनूँ ऐलै,
लौटी गुरू के धामों में (१५)

गुरूधामों में ‘सारशब्द’ के,
चर्चा रोजे होना छै।
पर नैं समझै मेँहीँ, ऐमें,
कहिनों जादू टोना छै। (१६)
‘सारशब्द’ कें समझे लेली,
धरकन्धा दिस आबै छै।
काढ़ागोला में गुरूभाई,
लेगाँ रात बिताबै छै। (१७)

धरकन्धा में सारशब्द के,
चर्चा नैं छै जानी कें।
नासरी गंज तुरंत पधारै,
मिलतै कुछछू मानी कें (१८)

पाठ करे जौने वोही ठाँ,
चतुरानंद उचारै छै।
ई शब्दों पर महंत लेकिन,
कुछछू कहाँ विचारै छै॥(१९)

पूछै अर्थ चतुरानंद के,
मेँहीँ संतों सें जखनी।
सब्भे बोलै झटपट ब्रहमा,
चिंता में मेँहीँ तखनी॥ (२०)

चतुरानन्द नहीं ‘चतुरानन्द’,
मेँहीँ बाबा बोलै छै।
पाठ करै वाला भी लज्जित,
सब्भै के मन डोलै॥ (२१)

बलिया ऐलै मेँहीँ बाबा,
संतुष्ट वहूँ नै होलै।
लगै कर्मचारी बैठा के,
बाते कुछ टैढ़ों बोलै (२२)

चुट्टी काटै महाराज जी !
अँग्रेजी के छात्र अहाँ।
कोन किताब पढ़ी कें योगी,
पैल्हें ई प्रेरणा कहाँ॥ (२३)

अँग्रेजी के पुस्तक पढ़लौं,
‘आल मेन मस्ट डाय’ कें।
मेँहीँ बाबा सब लोगों के,
सुझाबै छै समझाय कें॥(२४)

‘सारशब्द’ के अर्थ खोजने,
पहिने तेन ऐलै बलिया।
आरा, बिहटा, होलो छपरा,
पीछू छोडी मेघरिया॥ (२५)

महावीर जी छपरा केरों,
एक माह उनका पासें।
सत्संगों में वहीं बिताबै,
‘सारशब्द’ केरों आसें॥(२६)

पुन: जोतरामराय आबै,
स्वामी रामानंदों लग।
चलतें-चलतें थकलों छेलै,
आगू कैसे बढ़तै पग॥ (२७)

‘सारशब्द’ के अर्थ हमेशा,
पूछै रामानंदों सें।
जे छेलै ज्ञानी अलबत्ता,
आश्रम के सुखकंदों सें॥(२८)

पर आश्रम के स्वामी बिगडे,
कुछछु कहाँ बताबै छै।
मेँहीँ मन मारी कें बैठे,
हरि गुण खाली गाबै छै॥ (२९)