सर्ग - 9 / महर्षि मेँहीँ / हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’
छेलै जब ईस्वी सान बारह,
भागलपुर बाबा आबै छै।
नन्दन साहब साथे छेलै,
सत्संग विधान बनाबै छै॥ (१)
पहिलों पहल पूर्णियाँ केरो,
मधुवनी मुहल्ला आबी कें।
तीन दिनाँ सत्संग कराबै,
ईश्वर केरोन गुण गाबी कें॥ (२)
रहै उपस्थित मेँहीँ बाबा,
सेवा में तन-मन डालै छै।
भोजन-भंडारा भार सकाल,
अपनाँ भार सकल,
अपनाँ हाथे संभालै छै॥ (३)
आगू फिर कटिहार पधारी,
तीन दिन रहै सत्संगों में।
रहै जोतरामराय आबी,
पन्द्रह दिन बड़ी उमंगों में॥ (४)
सुबह-शाम सब सत्संगों में,
बैठे आबी-आबी जनता।
मेँहीँ बाबा रसोइया में,
बड़ी दिखाबै अपनों क्षमता॥ (५)
सेवा करै कुशलता पूर्वक,
सब्भे ठो काम सम्हालै छै।
लेकिन भूलों सें दाली में,
नीमक दोबारा डालै छै॥ (६)
बाबा बोलै लाला हमरों,
की मीट्ठों दाल बनैनें छै।
दूर-दराजों के सतसंगी,
सब बड़ी चाव सें खैनें छै॥ (७)
देवी बाबा मेँहीँ जी कें,
कहै लाला बड़ी प्यारों सें।
मेँहीँ बाबा के सब गलती,
बतलाबै बड़ी दुलारों सें॥ (८)
भागलपुर के लक्ष्मीपुर में,
सत्संगी सब कें खुश करने।
आगू गेलै देवी बाबा,
जंगल केरो रस्ता धरने॥ (९)
पर्वत केरो दृश्य मनोहर,
भरलों फल-फूलों सें लागै।
जीव जंगली देखी-देखी,
मिलैनें नजर सबठो भागै॥ (१०)
चिड़िया चुनमुन-चुनमुन करने,
जंगल में शोर मचाबै छै।
मेँहीँ बाबा साथे-साथे,
दर्शन केरो सुख पाबै छै॥ (११)
एक जगह मेँहीँ बाबा जब,
चावल, सब्जी, दाल मिलाबै।
लपका चावल केरो कारण,
घी जानी कें ढेर मिलाबै॥ (१२)
खाना पर बैठे जब बाबा,
खाली सब्जी-दाले खैलक।
चावल नैंखैला के कारण,
सत्संगी भी समझ न पैलक॥ (१३)
संध्या कालें खीर बाँटतें,
मेँहीँ सें बाबा बोलै छै।
चावल नैंखैला के भेदों,
अपन्हैं सब फेनूँ खोलै छै॥ (१४)
‘आज परोसा तुमने भोजन,
चावल में घी कुछ ज्यादा था।
बाँकी लोगों का भोजन तो,
लगता है बिल्कुल सादा था॥ (१५)
ऐसा भेद-भाव के कारण,
मैंने चावल का त्याग किया।
सत्संगी में भेद न करना,
अत्युत्तम मानों सीख दिया॥ (१६)
मानव-मानव एक हमेशा,
है एक खून सबके नस में।
भेद करेगा, पछतायेगा,
निश्चय वाधा होगा यश में’॥ (१७)
मेँहीँ बाबा बोलै ‘गुरुवर,
मेरा दिल जरा न काला था।
चावल गीला ना हो जाये,
घी सब में समान डाला था’॥ (१८)
सुनथे बाबा चिंतित होलै,
‘पहले गर बता दिया होता।
यह बढ़िया भोजन पाने का,
अवसर मैं कभी नहीं खोता’॥ (१९)
रहै वभनगामा बाँका में,
आगू करने सत्संग वहाँ।
माया गंज सत्संग मंदिर,
तब ऐलै आना रहै जहाँ॥ (२०)
धन्य भाग्य ऊ शिष्यों केरो,
जे गुरु संगे समय बिताबै।
गुरु के सेवा करै निरंतर,
साथे बैठी हरि गुण गाबै॥ (२१)