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सर्जक हैं हम / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'

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सर्जक हैं हम
गीत हमारे साथ हमेशा
हॅंसते-रोते हैं
सर्जक हैं हम कभी नहीं
एकाकी होते हैं

शब्द अर्थ के चन्दा-सूरज
औ‘ भावों के तारे
ताना-बाना बुनते रहते
बैठे नदी किनारे
कॉंधों पर संसार सृजन का
हरदम ढ़ोते हैं

मथ देते हैं युग चिन्तन के
सागर को ये पल में
दिखला देते हैं भविष्य को
वर्तमान के तल में
सारस्वत संगम में नित्य
लगाते गोते हैं।

वेद ऋचाओं की भाषा में
ढ़ली गीत की बोली
ढॅंूढ़ लिया करते गीतों में
ईद, दशहरा, होली
मन की प्यास बुझाने वाले
मनहर सोते हैं

गीत अमर है कब मरता है
कभी किसी के मारे
दर्द और दुख के संवाहक
खुशियों के हरकारे
बीज गीत का सदा सृष्टि में
गहरे बोते हैं

गीत धरा का संस्कार है
गीत विश्व की आशा
गीत शक्ति का तेज पुंज है
गीत ह्दय की भाषा
गीत हमारे अर्न्तमन का
कल्मष धोते हैं