भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सर्दियों की सुबह एक / रजनी अनुरागी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


एक
सर्दियों में सुबह-सुबह
रजाई में अलसाये बच्चों पर
ममता बिखेरतीं आखें
और प्यार से सहलाते-उठाते हाथ
थोड़ा झिझकते
कि अभी थोड़ा और सो लें
फिर भी स्कूल तो जाना ही है

मद्धम आँच पर सिकते हैं परांठे
खिलाये जाते हैं बड़े लाड़ से
और रखे जाते हैं टिफिन में
सब्जी-अचार और फल
बच्चे की आती है आवाज़
“चॉकलेट भी रख देना मम्मा”

हर वह चीज़ जो खाने की हो या दिखाने की
बच्चों के बैग में रख दी जाती है
किताबों के साथ
किताबें जो आजकल बहुत महंगी हैं
स्कूलों में