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सर्दी की तेज़ लू में / अनिरुद्ध सिन्हा
Kavita Kosh से
सदी की तेज़ लू में भी हमें जीने का ग़म होगा
तुम्हारे हाथ का पत्थर वफ़ादारी में कम होगा
समझ लेने की कोशिश में यही हर बार तो होगा
किसी बच्चे के रोने का अकेले में वहम होगा
ये माना रोज़ मेरी ख़्वाहिशें लेती हैं अंगड़ाई
ग़मों से अपना याराना न टूटे, ये भरम होगा
लहू में वक़्त का दामन दिखाएँगे तुम्हें उस दिन
निशाने पर अगर ज़ख़्मी कोई मौसम तो नम होगा
खुद अपने आप से महफूज़ रखने की तमन्ना में
शबे ग़म के अंधेरों में वफ़ाओं पर सितम होगा!