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सर्दी की बातें / अजित सिंह तोमर

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बहुत दिन बाद उसने पूछा
कैसे हो?
मेरे पास इस सवाल का
एक अस्त व्यस्त जवाब था
इसलिए मैंने कहा
बिलकुल ठीक
उसके बाद
बहुत दिनों तक हालचाल नही पूछा उसने
सम्भवतः वो समझ गई थी
बिलकुल ठीक के बाद
मुद्दत लगती है सब कुछ ठीक होने में।


परसों उसका फोन आया
जब तक फोन जेब से निकाला
फोन कट गया
इसका एक अर्थ यह लगाया मैंने
वो उसी क्षण चाहती थी मेरी आवाज़ सुनना
लेशमात्र का विलम्ब शंका पैदा कर गया होगा
जैसे ही कॉल बेक के लिए फोन किया टच
दूसरा फोन आ गया अचानक से
इस तरह टल गया मेरा भी वो क्षण
जब कुछ कहना था मुझे
प्रेम में टलना एक बड़ी दुर्घटना थी
ये बात केवल जानता था हमारा फोन।


उस दिन मैंने मजाक में कहा
प्लास्टिक मनी नही मेरे पास
वरना कॉफी पिलाता तुम्हें
उसने हँसते हुए कहा
अच्छा है नही है तुम्हारे पास
वरना कॉफी नही
शराब पिलाने के लिए कहती तुमसे
मैंने कहा यूं तो कैशलैस एक अच्छा अवसर हुआ
उसने उदास होते जवाब दिया
जब तुम होपलैस हो
फिर कोई अवसर अच्छा कैसे हो सकता है?


लास्ट दिसम्बर की बात है
एक धुंध भरी सुबह
उसने कहा
मौसम को चिढ़ा सकते हो तुम
मैंने कहा वो कैसे?
उसके बाद उसने मुझे गले लगा लिया
और हँसने लगी
उस हँसी के बाद
दिसम्बर उड़ गया धूप बनकर
पहली बार हँसी के बदले
मुझे सूझ रहा था
केवल मुस्कुराना।