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सर्प-सा शत्रु पाला नहीं था / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
सर्प सा शत्रु पाला नहीं था।
दिल हमारा भी काला नहीं था॥
उसकी आँखों में मदहोशियाँ थीं
गो कि हाथों में प्याला नहीं था॥
हक नमक का अदा कर गया वो
जिसकी खातिर निवाला नहीं था॥
अश्रु कहने लगे भेद मन के
क्योंकि खुद को सँभाला नहीं था॥
नफ़रतों के अँधेरे बहुत थे
प्यार का ही उजाला नहीं था॥