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सर्प लाज के बँधे / ऋषभ देव शर्मा

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बिजलियाँ तड़प गिरीं, आशा के गाँव में
सर्प लाज के बँधे, यौवन के पाँव में

व्यर्थ हुई भाँवरें, मौन हुई झाँझरें
सपने उदास खड़े, पीपल की छाँव में

एक आँख जोहती, एक आँख टोहती
शंका के छिद्र हुए, अर्पण की नाव में

पंख रंगीन जले, प्राण रूप ने छले
जीतकर हार मिली, जीवन के दाँव में

विस्मृत पहचान हुई, राह अंजान हुई
भटका महमान अब, ठहरे किस ठाँव में?