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सर्वनाम वह / नंदकिशोर आचार्य

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कितनी सारी कलियों में
खिलता है सूनापन
कितनी सारी पाँखों में
भरता उड़ान
कितने सारे नक्षत्रों में
होता भासित
कितने सारे सौरमंडलों में
करता अपनी परिक्रमा

न होना
कितने सारे होने को
करता सम्भव
कितने सारे जीवन में
जीती है मृत्यु
कितनी सारी संज्ञाओं में
ज्ञापित है
सर्वनाम वह!