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सर्वहारा का वक्तव्य / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
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लोग
हमारी भाषा में
बोल रहे हैं,

यह सच है।

सारे वे ख़ौफ़नाक शब्द
आज गूँज रहे हैं
संसद में
नेताओं के वक्तव्यों में

यह सच है !

अरे, हमारे नारे
लगा रहे तुम भी ?
अचरज

पर, सच है।

हलचल / तत्परता
आज अचानक
लोग
हमारे अर्गल
खोल रहे हैं,

यह सच है।

आला-आला अफ़सर
आज
अँधेरी झोपड़ियों में
जा-जा
दुख दर्द हमारे
पहली बार
टटोल रहे हैं,

यह सच है।

लगता है —
‘क्रांति’ उभर आयी है !
गाँवों में
नगरों में
‘जनवादी’ फ़ौज़
उतर आयी है !
कैसा अद्भुत
जन-आन्दोलन है !
सत्ता-लोलुप नेताओं में

रातों-रात
हुआ परिवर्तन है !

अथवा
यह स्व-रक्षा हित
केवल आडम्बर है,
छल-छद्म भरा
मिथ्या संवेदन-स्वर है।