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सर्वोत्तम उद्योग / अवनीश सिंह चौहान
Kavita Kosh से
छार-छार हो
पर्वत दुख का
ऐसा बने सुयोग
गलाकाट
इस कंप्टीशन में
मुश्किल सर्वप्रथम आ जाना
शिखर गए पा
किसी तरह तो
मुश्किल है उस पर टिक पाना
सफल हुए हैं
इस युग में जो
ऊँचा उनका योग
बड़ी-बड़ी
‘गाला’ महफ़िल में
कितनी हों भोगों की बातें
और कहीं टपरे के नीचे
सिकुड़ी हैं
मन मारे आँतें
कोई हाथ
साधता चाकू
कोई साधे जोग
भइया मेरा
बता रहा था
कोचिंग भी है कला अनूठी
नाउम्मीदी की धरती पर
उगती है
करिअर की बूटी
सफल बनाने का
असफल को
सर्वोत्तम उद्योग