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सर्व-शिरोमणि विश्व-सभा के / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(राग लावनी)

सर्व-शिरोमणि विश्व-सभाके, आत्मोपम विश्वभरके।
विजयी नायक जग-नायकके, सच्चे सुहृद चराचरके॥
सुखद सुधा-निधि साधु कुमुदके, भास्कर भक्त-कमल-वनके।
आश्रय दीनोंके, प्रकाश पथिकोंके, अवलबन जनके॥
लोभी जग-हितके, त्यागी सब जगके, भोगी भूमाके।
मोही निर्मोहीके, प्यारे जीवन बोधमयी माँ के॥
तत्पर परम हरण पर-दुखके, तत्परता-विहीन तनके।
चतुर खिलाड़ी जग-नाटकके, चिन्तामणि साधक-जनके॥
सफल मार्ग-दर्शक पथ-भ्रष्ट के, आधार अभागोंके।
विमल विधायक प्रेम-भक्ति के, उच्च भावके, त्यागोंके॥
परम प्रचारक प्रभु-वाणीके, ज्ञाता गहरे भावोंके।
वक्त, व्याक्याता, विशुद्ध, उच्छेदक सर्व कुभावोंके॥
पथ दर्शक निष्काम-कर्मके, चालक अचल सांख्य पथके।
पालक सत्य-‌अहिंसा व्रतके, घालक नित अपूत पथके॥
नाशक त्रिविध तापके, पोषक तपके, तारक भक्त के।
हारक पापोंके संजीवन-भेषज विषयासक्त के॥
पावनकर्ता पतितोंके, पृथ्वीके, प्रेत-पितृ-गणके।
भूषण भूमण्डलके, दूषण राग-द्वेष रणांगण के॥
रक्षक अतिदृढ़ सत्य-धर्मके, भक्षक भव-जंजालोंके।
तक्षक भोग-रोग, धन-मदके, व्यापारी सत-लालोंके॥
दक्ष-दुभाषी ‘जन, जन-धन’के, मुखिया राम-दलालोंके।
छिपे हु‌ए अज्ञात लोक-निधि, मालिक असली मालोंके॥
चूड़ामणि दैवी गुण-गणके, परमादर्श महानोंके।
महिमा-वर्णनमें अशक्त तव विद्या-बल विद्वानोंके।