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सर को वो आस्तां मिले न मिले / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
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सर को वो आस्ताँ मिले न मिले
ख़ाक को आस्माँ मिले न मिले
आओ खिल जायें चाँदनी की तरह
फिर ये मौसम जवाँ मिले न मिले
दिल को होने दो हम-कलामे-दिल
फिर दिलों को ज़बाँ मिले न मिले
आज की सुह्बतें ग़नीमत जान
कल हमारा निशाँ मिले न मिले
कह ही दूँ दिल का मुद्दआ उन से
वक्त़ फिर मिहरबाँ मिले न मिले
चल के 'रहबर` से कुछ कलाम सुनें
फिर वो जादू-बयाँ मिले न मिले