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सर पर थी कड़ी धूप बस इतना ही नहीं था / मंजूर 'हाशमी'

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सर पर थी कड़ी धूप बस इतना ही नहीं था
उस शहर के पेड़ों में तो साया ही नहीं था

पानी में ज़रा देर को हलचल तो हुई थी
फिर यूँ था के जेसे कोई डूबा ही नहीं था

लिक्खे थे सफ़र पाँव में किस तरह ठहरते
और ये भी कि तुम ने तो पुकारा ही नहीं था

अपनी ही निगाहों पे भरोसा न रहेगा
तुम इतना बदल जाओगे सोचा ही नहीं था

कंदा थे मेरे ज़ेहन पे क्यूँ उस के ख़द-ओ-ख़ाल
चेहरा जो मेरी आँख ने देखा ही नहीं था