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सर में जब इश्क़ का सौदा न रहा / नासिर काज़मी
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सर में जब इश्क़ का सौदा न रहा
क्या कहें ज़ीस्त में क्या क्या न रहा
अब तो दुनिया भी वो दुनिया न रही
अब तिरा ध्यान भी उतना न रहा
किस्स-ए-शौक़ सुनाऊँ किसको
राजदारी का ज़माना न रहा
ज़िन्दगी जिसकी तमन्ना में कटी
वो मिरे हाल से बेगाना रहा
डेरे डाले हैं ख़िजा ने चौंदेस
गुल तो गुल, बाग़ में कांटा न रहा
दिल दहाड़े ये लहू की होली
ख़ल्क़ को ख़ौफ़ ख़ुदा का न रहा
अब तो सो जाओ सितम के मारो
आसमां पर कोई तारा न रहा।