Last modified on 18 अगस्त 2018, at 21:35

सर में जब इश्क़ का सौदा न रहा / नासिर काज़मी

सर में जब इश्क़ का सौदा न रहा
क्या कहें ज़ीस्त में क्या क्या न रहा

अब तो दुनिया भी वो दुनिया न रही
अब तिरा ध्यान भी उतना न रहा

किस्स-ए-शौक़ सुनाऊँ किसको
राजदारी का ज़माना न रहा

ज़िन्दगी जिसकी तमन्ना में कटी
वो मिरे हाल से बेगाना रहा

डेरे डाले हैं ख़िजा ने चौंदेस
गुल तो गुल, बाग़ में कांटा न रहा

दिल दहाड़े ये लहू की होली
ख़ल्क़ को ख़ौफ़ ख़ुदा का न रहा

अब तो सो जाओ सितम के मारो
आसमां पर कोई तारा न रहा।