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सलवार की गाँठ / दोपदी सिंघार / अम्बर रंजना पाण्डेय
Kavita Kosh से
अम्मा ने समझाया बार-बार
जिनगी में बहुत जरूरी हो गई गाँठ
खींच कर लगाई गाँठ पर गाँठ
बाँध-रखना अच्छे से
खुल न जाए यहाँ- वहाँ
खेलते- कूदते हुए
उठते बैठते हुए ,आते समय, जाते समय
देख लेना, समझ लेना, जान लेना, बूझ लेना
टोय टोय लेना गाँठ, कस कस लेना गाँठ
सखी दोपदी !
कैसे बताऊँ अम्मा को !
कैसे समझाऊँ अम्मा को !
खेत में, खलिहान में, रास्ते में, स्कूल में
परिवार में, पड़ोस में
गाँव में, देश में
कितनी तेज़ तेज़ धार वाली आँख
बाँधू सँभालू लाख
कहाँ- कहाँ ! कैसे-कैसे !!
खुल-खुल जाती गाँठ
खोल खोल दी जाती गाँठ
अम्मा लगाती जाती गाँठ पर गाँठ
खुल खुल जाती गाँठ, खोल दी जाती गाँठ।