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सलामत रखना मुझे, ऐ मेरे ताबीज़ / अलेक्सान्दर पूश्किन / सोनू सैनी

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सलामत रखना मुझे, ऐ मेरे ताबीज़,
ज़ुल्म के साये से पश्चाताप की आग से,
बचाकर रखना तनहाई के अंगारों से,
यूँ ही नहीं मिला था उन पलों में ताबीज़ ।

जब सागर बनाए भयानक तस्वीर
लहरें समुद्र की मुझ पर उमड़ पड़ें,
जब खूँखार बादल गरजें दहाड़ें,
सलामत रखना मुझे, ऐ मेरे ताबीज़ ।

परदेस में तनहाई के पल में नाचीज़,
उस खामोशी में उस उदासी में,
ख़ुद से ख़ुद की मेरी लड़ाई में,
सलामत रखना मुझे, ऐ मेरे ताबीज़ ।

नायब पाकीज़ा धोखा है लजीज़,
रूह का जादुई सा झरोखा है...
बदल गया है वो छिप गया है...
सलामत रखना मुझे, ऐ मेरे ताबीज़ ।

काश दिल के ये घाव अजीज़
मेरे फिर कहीं से हरे न हों जाएँ ।
उम्मीद, चैन, नींद न कहीं खो जाएँ;
सलामत रखना मुझे, ऐ मेरे ताबीज़ ।

1825

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : सोनू सैनी

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
              Александр Пушкин
       Храни меня, мой талисман…

Храни меня, мой талисман,
Храни меня во дни гоненья,
Во дни раскаянья, волненья:
Ты в день печали был мне дан.

Когда подымет океан
Вокруг меня валы ревучи,
Когда грозою грянут тучи —
Храни меня, мой талисман.

В уединенье чуждых стран,
На лоне скучного покоя,
В тревоге пламенного боя
Храни меня, мой талисман.

Священный сладостный обман,
Души волшебное светило…
Оно сокрылось, изменило…
Храни меня, мой талисман.

Пускай же ввек сердечных ран
Не растравит воспоминанье.
Прощай, надежда; спи, желанье;
Храни меня, мой талисман.

1825 г.