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सलाम तेरी मुरव्वत को मेहर-बानी को / ख़ुर्शीद अहमद 'जामी'

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सलाम तेरी मुरव्वत को मेहर-बानी को
मिला इक और नया सिलसिला कहानी को

नसीम-ए-याद-ए-ग़ज़ालाँ चली न फूल खिले
वो रेग-ज़ार मिले मौसम-ए-जवानी को

बहुत उदास बहुत मुनफ़इल नज़र आई
निगाह चूम के रूख़्सार-ए-शादमानी को

दयार-ए-शेर में ‘जामी’ क़ुबूल कर न सका
मेरा मज़ाक़ रिवायत की हुक्मरानी को