सलाम / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’
बिन मिले ही दूर से आपका सलाम हो गया
बंदा आपके पास आया नहीं गुलाम हो गया।
बिन मिले ही दूर…
मेहमान नमाजी कब तलक ख़िदमत हाजिर रहे
बिनमोल बिकने वाला सरे आम नीलाम हो गया
बिन मिले ही दूर…
दिल की बात मत पूछिये और न खबर लीजिए
कमबख्त अपना दिल लगाया था हलाल हो गया
बिन मिले ही दूर…
कि अब किसे अच्छा और किसे खराब कहियेगा
ऐसा क्या जो मुहब्बत में बंदा बदनाम हो गया
बिन मिले ही दूर…
बहुत याद किया बहुत सपनें देखे थे प्यार के मैंने
सब धरे के धरे रह गये दिल कत्लेआम हो गया
बिन मिले ही दूर…
न तो चैन था और न ही नींद थी ऑखों में मेरे
दिल उखड़ा सा था और चेहरा मलाल हो गया
बिन मिले ही दूर….
कि पूछिये मत दूसरे दिल की बात अपने दिल से
बिन्दु यही किया था कि जिंदगी फटेहाल हो गया
बिन मिले ही दूर…