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सलाह / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
आहिस्ता बोलिए
कोई सुन लेगा
कुछ लोग दुखी हैं कि बाक़ी लोग ज़िन्दा हैं
घोड़े जो खड़ी फ़सलें रौंदते हुए निकल गए थे
फिर लौट रहे हैं
हवा धीरे-धीरे बिखेरती जा रही है राख
राख के ढेर में छिपी हुई आग
अफ़वाहों से बचिए
कुछ लोगों का ख़याल है
यह आबादी हिंस्र पशुओं में तब्दील होने वाली है
आप हँसे, आपका अधिकार है
मगर इस तेज़ बारिश में बाहर न निकलें
यह मेरी सलाह है।