भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सलीब / नूपुर अशोक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वक़्त ने
मेरे सामने एक सलीब रख दी
मैंने सलीब पर खुद को टाँग कर
कीलें ठोक दीं
और हर कील के साथ कहा
“खुदा मुझे कभी माफ़ मत करना
क्योंकि मुझे मालूम है
मैं क्या कर रही हूँ”