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सलोने सपने / प्रेम कुमार "सागर"

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जहाँ हर रात कुछ सपने सलोने सोते है
झील ये क्योँ तेरी आँखों की तरह होते है.

घनेरी शाम है तेरा यूँ पलकों का गिराना
इन कोटरों में जुगनू भी शबनम संजोते है.

बातें हज़ार करती है झुक-झुक कर निगाहें
और लब दो, हरदम सैकड़ो तूफ़ान ढोते है.

प्यार की, आँखों से बारिश, तुम ज़रा कर दो
अरमां के, कुछ पेड़ दिल में, हम भी बोते है.

देखा 'सागर' को तुमने मुस्काते हुए हर दिन
तुम्हे मालूम है हँसते पलंग में पेड़ रोते है