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सवालों का जवाब / मंजूषा मन
Kavita Kosh से
अचानक वो भागी
नाली की ओर
उबकाईयाँ आ रहीं थीं उसे
कुछ ही देर में
पुरे घर में बँट रहे थे बताशे
दी। जा रहीं थीं बधाइयाँ
सब खुशियाँ मना रहे थे
वो घबराकर चक्कर खा रही है
उसे पता है
तीसरी बार भी
पेट के भीतर झाँका जायेगा
पहचाना जायेगा घर का चिराग
और न हुआ तो
एक नन्हीं सी जान पर
फिर चलवाई जायेगी आरी
फिर उसकी बोटियाँ
बहा दीं जाएँगी
किसी गन्दे नाले में...
मेरे सवालों का जवाब
जब न सुझा
मेरे सवालों का जवाब
खड़ा कर दिया
तुमने
मुझ ही सवालों