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सवाल का जवाब था जवाब के सवाल में / अब्दुल अहद 'साज़'
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सवाल का जवाब था जवाब के सवाल में
गिरफ़्त-ए-शोर से छुटे तो ख़ामुशी के जाल में
बुरा हो आईने तिरा मैं कौन हूँ न खुल सका
मुझी को पेश कर दिया गया मिरी मिसाल में
बक़ा-तलब थी ज़िन्दगी शिफ़ा-तलब था ज़ख़्म-ए-दिल
फ़ना मगर लिखी गई है बाब-ए-इन्दिमाल में
कहीं सबात है नहीं ये काएनात है नहीं
मगर उमीद-ए-दीद में तसव्वुर-ए-जमाल में
क़दीम से हटे तो हम जदीद में उलझ गए
निकल के गर्दिश-ए-फ़लक से मौसमों के जाल में