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सवाल बे-अमान बनके रह गए / अब्दुल अहद 'साज़'
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सवाल बे-अमान बन के रह गए
जवाब इम्तिहान बन के रह गए
हद-ए-निगाह तक बुलन्द फ़लसफ़े
घरों के साएबान बन के रह गए
जो ज़ेहन, आगही की कारगाह थे
ख़याल की दुकान बन के रह गए
बयाज़ पर सम्भल सके न तजरबे
फिसल पड़े बयान बन के रह गए
किरन किरन यक़ीन जैसे रास्ते
धुआँ धुआँ गुमान बन के रह गए
ज़ियाएँ बाँटते थे, चान्द थे कभी
गहन लगा तो दान बन के रह गए
मिरा वजूद शहर शहर हो गया
कहीं कहीं निशान 'बन' के रह गए
कमर जवाब दे के झुक गई बदन
सवालिया निशान बन के रह गए
मैं फ़न की साअतों को लब न दे सका
नुक़ूश बे-ज़बान बन के रह गए
नफ़स नफ़स तलब तलब थे 'साज़' हम
क़दम क़दम तकान बन के रह गए