सवाल - 1 / सुधा उपाध्याय
निहायत ही आसान तरीके से उनसे पूछा,
मैं हिन्दू हूं, कब तक सुरक्षित रहूंगा?
उन्होंने कहा, जबतक तुम्हारे सवाल
तुम्हारे मुंह में क़ैद हैं।
मैंने फिर से पूछा
अगर मुसलमान हुआ, तब कब तलक सुरक्षित हूं?
उन्होंने कहा, मौत की राह देख, तरीके हम बताएंगे।
मुझे लगा, उधर ज़ुबान को बांधकर रखा है
इधर मौत को कब्ज़े में किया है
क़ैद और मौत की इस नई परिभाषा में उलझा
कुछ बोलता उससे पहले मेरे हाथ ऊपर उठे
उनके लोगों ने ‘मेरे’ और ‘धर्म’ के बीच की दूरी को भांप लिया
देशद्रोही करार दिया और मार दिया।
इस देश का सबसे बड़ा सच है भम्र
जो सवाल उठाते हैं वो देशद्रोही।
इस भ्रम और देशद्रोह में रह गए वो सारे सवाल
जो पूछने आया था मैं
सवाल, जो पूछती है अकसर खाली जेब,
पूछती है, फटे जूते और घिसटते तलवे की तू-तू मैं-मैं,
फटी साड़ी को तहों में खुद को छुपाती मां की आंखें
पूछती है, अपने ही खेत में एक साथ फांसी लगाने से पहले
बाप और बेटे के बीच आंखों-आंखों से कही गई अनकही बातें,
पीटने वाले की मार और पिटने वाले की चीख,
नजीब की अम्मी, जिनके आंसू न तो हिन्दू हैं न मुसलमान
और ऐसे ही रह गए अनगिनत सवाल।
जानता हूं इन सवालों की कोई अहमियत नहीं
कल फिर से होगा एक और बड़ा इवेंट
हर तरफ होगा जयघोष
कमल पर नाचेंगी औरतें और मर्द
और दूर से बहुत सारे लोग
टीवी पर देख रहे होंगे फिल्म।