सवाल / सुनील श्रीवास्तव
वे इन्तज़ार करते हैं हत्याओं का
ताकि लाशों को खींचकर
अपने पाले में रख सकें
फिर पूछ सकें हमसे —
’अब क्यों चुप हैं आप ?’
वे अतीत से खोदकर लाते हैं मुर्दे
और सवाल करते हैं वही —
’तब क्यों चुप थे आप ?’
वे दुनिया के कोने-कोने से
ढोकर लाते हैं शव
हमारे सामने पटक देते हैं
और सवाल करते हैं
वे काल्पनिक हत्याएँ भी रचते हैं
उनमें खून का रंग भरते हैं
फिर हमसे सवाल करते हैं
वे रोपते जाते हैं अपनी भेड़िया-वृत्ति
अधपके दिमागों में
देते हैं अपने जंगल को विस्तार
इस जंगल में हमारा कोई भी भाई
साधु हो या कसाई
हो जाता है शिकार
हर शिकार के बाद वे
समवेत हूकते हैं
हमसे सवाल करते हैं
उन्हें हमारी स्थिति
और जवाब से कोई मतलब नहीं होता
वे सवाल करते हैं
ताकि जब मारे जाएँ हम
उन्हें जवाब न देना पड़े ।