भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सवेरा तो होगा इसी आस में हूँ / डी .एम. मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सवेरा तो होगा इसी आस में हूँ
नहीं कोई संदेह विश्वास में हूँ

अना हूं ग़रीबों की हर आस में हूँ
कभी भूख में हूं , कभी प्यास में हूँ

अंधेरों ने बेशक मुझे घेर रक्खा
उजालों के लेकिन बहुत पास में हूँ

अयोध्या यक़ीनन सजेगी दुबारा
अभी और कुछ दिन मैं वनवास में हूँ

कभी बंदिशों में, कभी गर्दिशों में
तसव्वुर में हर वक़्त मधुमास में हूँ

बहुत दर्द होता है दिल टूटने पर
अभी तक उसी पल के एहसास में हूँ

मेरी ज़िन्दगी में बहुत मुश्किलें हैं
मगर मुश्किलों में भी उल्लास में हूँ