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सवेरा तो होगा इसी आस में हूँ / डी .एम. मिश्र
Kavita Kosh से
सवेरा तो होगा इसी आस में हूँ
नहीं कोई संदेह विश्वास में हूँ
अना हूं ग़रीबों की हर आस में हूँ
कभी भूख में हूं , कभी प्यास में हूँ
अंधेरों ने बेशक मुझे घेर रक्खा
उजालों के लेकिन बहुत पास में हूँ
अयोध्या यक़ीनन सजेगी दुबारा
अभी और कुछ दिन मैं वनवास में हूँ
कभी बंदिशों में, कभी गर्दिशों में
तसव्वुर में हर वक़्त मधुमास में हूँ
बहुत दर्द होता है दिल टूटने पर
अभी तक उसी पल के एहसास में हूँ
मेरी ज़िन्दगी में बहुत मुश्किलें हैं
मगर मुश्किलों में भी उल्लास में हूँ