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सवेरा हो रहा है / शिवनारायण जौहरी 'विमल'
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उठो मेरे लाल
जगो मेरे प्राण
आंखेँ खोल कर देखो
समय कैसे करबट बदलता है
यामिनी के सभी शृंगार
फीके पड गए हैं
ऊषा सुंदरी दौड कर
आज़ाद करा लाई है
बाल रवि को
निशा कि क़ैद से
क्षितिज पर बैठा दिया है
चलो खेलें उसी के साथ
कोई दस्तक दे रहा है द्वार पर
उजेला छत से उतर कर
आगया आंगन मैं
मलियानिल बैठ खिडकी पर
प्रभाती गा रही है
पत्तियाँ झूम, ने लगी है
फूल कर रहे हैं
प्रक्रर्ति के श्रगार का स्वागत
गाय का बछड़ा ब्याकुल है
दूध पीने के लिए
घ्ंटे घड़ियाल बजने लगे
देवों को जगाया जा रहा है
तुम भी जगो मेरे लाल
सबेरा हो रहा है॥