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ससुररिया में लुटै बहार / करील जी
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लोक धुन। ताल दादरा
ससुररिया में लुटै बहार,
हो चारो पहुना अलवेलवा॥धु्रव॥
हिलि-मिलि अलिन नवेली चलीं लै,
कोहबर भवन कुमार, हो चारो.॥1॥
संकर-मानस-हंस लखहु सखि,
उड़ि आये मिथिला-किनार, हो चारो.॥2॥
छवि-सुषमा उपमा सब लाजै,
रोम-रोम लुठत सिंगार, हो चारो.॥3॥
कमल वदन अलकें जनु अलिगन,
झुमत करत गुंजार, हो चारो.॥4॥
घाव करै हिय तियगन के ये,
तिरछे नयन कजरार, हो चारो.॥5॥
छवि लोलुप अँग-अँग समाई,
सकुचि बसंत बहार, हो चारो.॥6॥
त्रिभुवन-सुन्दर पाहुन छवि पर,
जीवन ‘करील’ निसार, हो चारो.॥7॥