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ससुरे सुनें, सुनें जामाता / नईम
Kavita Kosh से
ससुरे सुनें,
सुनें जमाता,
सुनें हमारे भाग्यविधाता।
कल की कल पर छोड़ चलूँ तो।
आसों यहाँ अकाल पड़ा है।
बटमारों कंजर से शासक-
कोड़े लिए भविष्य खड़ा है;
पूत गए
परदेस पेट को,
माता भी हो गई विमाता।
चूहों को भी बचे न दाने,
कैसे जाऊँ भाड़ भुनाने?
हाथ पसारे जिनके आगे
लगते अपनी व्यथा सुनाने।
नखदंतों से
लैस व्यवस्था-
साहू-सूदखोर गुर्राता।
जान भले ही जन की जाए-
झटका करें हलाल करें हम।
आओ तनिक निहाल करें हम
सूखा करें, अकाल करें हम;
वतन बदर लवकुश के जैसे,
गाएँ पिताओं की यशगाथा।